करनी करुनासिंधु की, मुख कहत न आवै।
कपट हेत परसैं बकी, जननी-गति पावै।
वेद-उपनिषद जासु कौ, निरगुनहिं बतावै।
सोइ सगुन ह्वै नंद की दाँवरी बँधावै।
उग्रसेन की आपदा मुनि मुनि बिलखावै।
कंस मारि, राजा करै, आपहु सिर नावै।
जरासंध बंदी कटैं नृप-कुल जस गावै।
अस्मय-तन गौतम तिया कौ साप नसावै।
लच्छा-गृह तै काढि़ कैं पांडव गृह ल्यावै।
जैसै गैया बच्छ कैं सुमिरत उठि धावै।
बरुन-पास तैं ब्रजपतिहि छन माहिं छुड़ावै।
दुखित गयंदहिं जानि कै आपुन उठि धावै।
कलि मैं नामा प्रगट ताकि छानि छवावै।
सूरदास की बीनती कोउ लै पहुँचावै।।4।।