कंस नृप अक्रूर ब्रज पठाये -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंडमलार


कंस नृप अकूर ब्रज पठाये।
गए आगै लैन नंद उपनंद मिलि, स्याम बलराम उन हृदय लाए।।
उतरि स्यंदन मिल्यौ देखि हरष्यौ हियौ, सोच मन यह भयौ कहा आयौ।
राज के काज कौ नाम अकूर यह, किधौ कर लैन कौ नृप पठायौ।।
कुसल तिहिं बूझि लै गए ब्रज निज धाम, स्याम बलराम मिलि गए वाकौ।
चरन पखराइ कै सुभग आसन दियौ, बिबिध भोजन दियौ तुरत ताकौ।।
कियौ अकूर भोजन दुहुँनि संग लै, नर नारि ब्रज लोग सबै देखै।
मनौ आए संग, देखि ऐसे रंग, मनहिं मन परस्पर करत मेषै।।
सारि ज्यौनार कै आचमन सुद्ध भये दियौ तंबोर नंद हरष आगे।
सेज बैठारि अकूर सौ जोरि कर, कृपा कर कहौ तब कहन लागे।।
स्याम बलराम कौ कस बोले हेत, नंद लै सुतनि हम पास आवै।
'सूर' प्रभु दरस की साध अतिही करत, आजु ही कहौ जनि गहरु लावै।।2956।।

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