ऐसौ जो पावस रितु प्रथम सुरति करि माधौ जू आवहि।
वरन वरन अनेक जलधर, अति मनोहर वेष।।
तिहिं समय सखि गगन सोभा, सबहिं तै सुबिसेष।
उड़त खग बग बृंद राजत, रटत चातक मोर।।
बहुत बिधि चित रुचि बढ़ावत, दामिनी घन घोर।
घरनि तन तृन रोम पुलकित, पिय समागम जानि।।
द्रुमनि कर बल्ली वियोगिनि, मिलतिं पति पहिचानि।
हस सुक पिक सारिका, अलि गुज नाना नाद।।
मुदित मंडल मेघ बरषत, गत बिहग बिषाद।
कुटज, कुंद, कदब, कोविद, करनिकार सुकंज।।
केतकी, करबीर बेला, बिमल बहु बिधि मंजु।
सघन दल, कलिका अलंकृत, सुमन सुकृत सुबास।।