ऊधौ हम कह जानै जोग।
नंदनँदन कारन जिन छाँड्यौ, कुल लज्जा अरु लोग।।
को आसन सम बैठे ऊधौ, प्रान वायु को साधै।
को धरि ध्यान धारना मधुकर, निरगुन पथ अराधै।।
काके जिय मैं नेम तपस्या, काकै मन संतोष।
काकै सब आचार फलौ वरु, को चाहत है मोष।।
निसि दिन कछु चित चेत न जानौ, नंदनँदन की आस।
को खनि कूप मरै बालू थल छाँड़ि, ‘सूर’ सरि पास।।3701।।