ऊधौ मन अभिमान बढ़ायौ।
जदुपति जोग जानि जिय साँचौ, नैन अकास चढ़ायौ।।
नारिनि पै मोकौ पठवत है, कहत सिखावन जोग।
मन ही मन अप करत प्रसंसा, यह मिथ्या सुख भोग।।
आयसु मानि लियौ सिर ऊपर, प्रभु अज्ञा परमान।
'सूरदास' प्रभु गोकुल पठवत, मैं क्यौं कहौ कि आन।। 3429।।