ऊधौ ब्रजहि जाहु पालागौ।
यह पाती राधा कर दीजौ, यह मैं तुमसौ माँगौ।।
गारी देहि प्रात उठि मोकौ, सुनति रहति यह बानी।
राजा भए जाइ नँदनंदन, मिली कूबरी रानी।।
मोपर रिस पावति काहे कौ, बरजि स्याम नहि राख्यौ?
लरिकाई तै बाँधति जसुमति, कहा जु माखन चाख्यौ।।
रजु लै सबै हजूर होति तुम, सहित सुतावृषभान।
‘सूर’ स्याम बहुरौ ब्रज जैहै, ऐसे भए अजान।। 3445।।