ऊधौ कैसे हैं वे लोग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


  
ऊधौ कैसे हैं वे लोग।
करि बहु प्रेम गह्यौ अविवेकहिं लिखि लिखि पठवत जोग।।
कीजै कहा नहीं बस काहू, व्यापत विरहवियोग।
'सूरदास' प्रभु मिलौ कृपा करि, गोपिनि व्यापत रोग।।3554।।

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