उमंगी ब्रजनारि सुभग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग आसावरी



उमँगी ब्रजनारि सुभग, कान्ह बरष-गाँठि उमँग, चहतिं बरष बरषनि।
गावहिं मंगल सुगान, नीके सुर नीकी तान, आनँद अति हरषनि।
कंचन-मनि-जटित-थार रोचन, दधि, फूल-डार, मिलिबे की तरसनि।
प्रभु बरष-गाँठि जोरति, वा छबि पर तृन तोरति, सूर अरस परसनि।।96।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः