उधौ कहा करै लै पाती -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग घनाश्री


  
उधौ कहा करै लै पाती।
जौ लौ मदनगुपाल न देखै, बिरह जरावत छाती।।
निमिष निमिष मोहि बिसरत नाही, सरद सुहाई राती।
पीर हमारी जानत नाही, तुम हौ स्याम सँघाती।।
यह पाती लै जाहु मधुपुरी, जहँ वै बसै सुजाती।
मन जु हमारे जहाँ लै गए, काम कठिन सर घाती।।
'सूरदास' प्रभु कहा चहत है, कोटिक बात सुहाती।
एक बेर मुख बहुरि दिखावहु, रहै चरन-राज-राती।।3494।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः