आवत ही मैं तोहिं लख्यौ री।
तुमहुँ भली, उनकौ मैं जानति, बिंबहि कीर भख्यौ री।।
अँग मरगजी पटोरी देखी, उर नखछत छवि भारी।
धनि वै नंदसुवन, धनि नागरि, कियौ सुरति नहिं हारी।।
हँसत गई सखि भवन आपनै, मन आनंद बढ़ाए।
'सूर' स्याम राधिका धाम के, द्वारै सीस नवाए।।2729।।