(अहो) दधि-तनया-सुत, रिपु-गति गमनी सुनि वृषभानुदुलारी।
दादुर-रिपु-रिपु-पतिहिं पठाई सो चित वेष बिचारी।।
अलि-वाहन-रिपु-वाहन-रिपु की तपनि भई अलि भारी।
सोच सम्हारि प्रभू खेदित है हौ बलि जाउँ तिहारी।।
मारुतसुत-पति-रिपु-पति-पली ता गुन-वारि बिसारी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन कौ ज्यौ हठ होत हत्यारी।। 51 ।।