अब मैहूँ इहिं टेक परी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी


अब मैहूँ इहिं टेक परी।
राखौं अटकि जान नहिं पावै, क्यौ मोकौ निदरी।।
मौन भई मै रही आजुलौ, अपनोइ मन समुझाऊँ।
येऊ मिले नैनही ढरि कै, देखति इनहुँ भगाऊँ।।
सुनि री सखी मिले ये कब के, इनही कौ यह भेद।
'सूरदास' नहिं जानी अब लौ, वृथा करति तनु खेद।।2394।।

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