अब कै जौ पिय कौ पाऊँ, तौ हिरदै माँझ दुराऊँ।
जौ हरि कौ दरसन पाऊँ, आभुषन अंग बनाऊँ।।
ऐसौ को जो आनि मिलावै, ताहि निहाल कराऊँ।
जौ पाऊँ तौ मंगल गाऊँ, मोतियनि चौक पुराऊँ।।
रस करि नाचौ गाँऊँ बजाऊँ, चंदन भवन लिपाऊँ।
मनि मानिक न्यौछावरि करिहौ, सो दिन सुदिन कहाऊँ।।
केतकि, करना, बेल, चमेली, फूलनि सेज बिछाऊँ।
तापर पिय कौ पौढ़ाऊँ, मै अँचरा वायु डुलाऊँ।।
चंदन, अगर, कपूर, अरगजा, प्रभु कै खौरि बनाऊँ।
जौ बिधना कबहूँ यह करै तौ, काम कौ काम पुराऊँ।।
अब सो करौ उपाउ सखी मिलि, जातै दरसन पाऊँ।
'सूर' स्याम देखै बिनु सजनी, कैसै मन अपनाऊँ।।2106।।