अब कैसै ब्रज जात बस्यौ।
हृदय दहत जमुना बिनु देखे जहाँ जहाँ नँदलाल हँस्यौ।।
तब वै धेनु रहति प्रमुदित चित, प्रभुहि विमुख तृन दंत कस्यौ।
ते अब विलख बदन कृस डोलतिं मनहु निकट केहरि दरस्यौ।।
नैन नीर मोचति सोचति है खजरीट जल पवन खस्यौ।
'सूरदास' बिनु ललित गोपालहिं, गोकुल कुल अहि विरह डस्यौ।।3850।।