सखी री और सुनहु इक बात।
आजु गुपाल हमारै आए, उठि करि इहिं सिस प्रात।।
कहुँ तै रैनि उनीदे मोहन, अपनै गृहतन जात।
आगै द्वार नंद है ठाढे, तातै गए न सकात।।
डगमगात मग धरत परत पग, आलसवंत जम्हात।
मानहुँ मदन दंड दै छाँडे, चुटुकी दै दै गात।।
जौ मै कह्यौ कहाँ रहे मोहन, तौ सनमुख मुसुकात।
तातै कछू न उत्तर आयी, सूर स्याम सकुचात।।2714।।