हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 128 श्लोक 1-20

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टाविंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


द्वारका में उत्‍सव, उषा का अन्‍त:पुर में प्रवेश और सत्‍कार, श्रीकृष्ण और विष्‍णुपर्व की महिमा तथा पर्व का उपसंहार

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर महाबाहु महातेजस्‍वी उग्रसेन ने जिनके नेत्र हर्ष से खिल उठे थे, भगवान् श्रीकृष्ण से कहा- ‘यदुनन्‍दन! सुनिये। महामते! जब अनिरुद्ध कुशलपूर्वक द्वारका लौट आये और उन्‍हें देख लिया गया, ऐसी दशा में उनके लिये कोई महान उत्‍सव रचाया जाय- ऐसा मेरा विचार है। महाभागा उषा भी सखियों से सेवित हो उनसे घिरी रहती है और अनिरुद्ध से मिलकर बड़ी प्रसन्नता के साथ आनन्‍दपूर्वक समय बिताती है। उषा की सखियों के समुदाय में जो कुम्‍भाण्‍ड की पुत्री रामा है, उसको अन्‍त:पुर में प्रवेश कराया जाय और महाभागा विदर्भनन्दिनी रुक्मिणी पुन: अपनी पुत्रवधु के रूप में उसका अभिनन्‍दन करे। कुम्‍भाण्‍ड की शुभ लक्षिणा कन्‍या रामा साम्ब को विवाह दी जाय और शेष कन्‍याएं क्रमश: अन्‍यान्‍यकुमारों को सौंप दी जायें।' (उग्रसेन के ऐसा कहने पर) अनिरुद्ध और श्रीधन्‍वा के भवन में उस शुभ उत्‍सव का आरम्‍भ हुआ। वहाँ नगर की नारियां मदमत्त होकर बाजे बजाने लगीं, कुछ अप्‍सराऐं नृत्‍य करने लगीं और दूसरी गीत गाने लगीं।

कुछ स्त्रियां वहाँ आनन्‍द-विनोद में मग्न थीं, कुछ आपस में बातें कर रही थीं तथा बहुत-सी स्त्रियां नाना प्रकार के वस्त्र धारण किये इधर-उधर भाँति-भाँति की क्रीड़ाएं करती थीं। कितनी ही स्त्रियां यौवन मद के वशीभूत हो स्‍वयं ही परस्‍पर आलिंगन करती थीं और कितनी द्यूतक्रीड़ा में लगी हुई थीं, उन सबके नेत्र हर्ष से खिल उठे थे। (जब पहले-पहले उषा का रथ द्वार पर आया। समय भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से कहा-) देवि! रुद्र-प‍त्नी पार्वती देवी ने सखियों से घिरी हुई उषा को मयूर युक्त रथ पर चढ़ाकर यहाँ भेजा है। तुम इसे ग्रहण करो। उत्तम कुल की दृष्टि से यह हमारे लिये स्‍पृहणीय है। इस श्रेष्ठ एवं सुन्‍दरी कन्‍या का नाम उषा है। यह बाणासुर की पुत्री और तुम्‍हारी बहू है, तुम इस भामिनी को सादर ग्रहण करो। तब अन्‍त:पुर की स्त्रियों ने मंगलाचारपूर्वक उस सुन्‍दरी बहू को ग्रहण किया और उसे अनिरुद्ध के महल में पहुँचाया। देवकी, रोहिणी, रुक्मिणी और शुभांगी आदि स्त्रियां अनिरुद्ध को देख कर स्‍नेह और हर्ष से विह्वल हो राने लगीं। रेवती और रुक्मिणी ने अनिरुद्ध को उनके श्रेष्ठ भवन में पहुँचाया और प्रद्युम्न पत्नी शुभांगी से कहा- बहू आज तुम अपने पुत्र अनिरुद्ध को देखकर अभ्‍युदयशालिनी हुई हो। यह बड़े सौभाग्‍य की बात है।

तदनन्‍तर सुन्‍दर मुख वाली वे स्त्रियां नाना प्रकार के वाद्यों की ध्‍वनि के साथ कुलाचार का सम्‍पादन करने लगी और उषा घर के भीतर विराजमान हुई। सुमुखी उषा अट्टालिका में वृष्णिपुंगव अनिरुद्ध के साथ रहकर अपने योग्‍य समस्‍त उपभोगों के द्वारा आनन्‍दपूर्वक समय बिताने लगी। सुन्‍दर कटिप्रदेश वाली अप्‍सरारूपधारिणी चित्रलेखा, उषा तथा अन्‍य सखियों से विदा ले स्‍वर्गलोक को चली गयी। उन सब सखियों के चले जाने पर असुर सुन्‍दरी उषा को सबसे पहले मायावती ने निमन्त्रित किया और वह उसे अपने घर में ले गयी। प्रद्युम्न पत्नी सुमध्‍यमा मायावती ने उस सुन्‍दरी पुत्रवधु को देखकर अन्न, पान और वस्‍त्र आदि के द्वारा उसका सत्‍कार किया। तदनन्‍तर यदुकुल की सभी स्त्रियों ने अपने कुलाचार पर दृष्टि रखकर क्रमश: बहू उषा को बुलाया और स्‍वधर्म का पालन किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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