हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 118 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 118 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच

तत्रस्था‍: परमा नायश्चित्रेण परमाद्भुता:।
ततो हर्म्ये शयानां तु वैशाखे मासि भामिनीम्।।1।।

द्वादश्यां शुक्लपक्षस्य सखीगणवृतां तदा।
यथोक्त्: पुरुष: स्वप्ने रमयामास तां शुभाम्।।2।।

विचेष्टमाना रुदती देव्या वचनचोदिता।
सा स्वप्ने रमिता तेन स्त्रीभावं चापि लम्भिता।।3।।

शोणिताक्ताे प्ररुदती सहसैवोत्थिता निशि।
तां तथा रुदतीं दृष्ट्वा सखी भयसमन्विता।।4।।
चित्रलेखा वच: स्निग्धामुवाच परमाद्भुतम्।

उषे मा भै: किमेवं त्वं रुदती परितप्यसे।
बले: सुतसुता च त्वंं प्रख्यारता किं भयान्विता।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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