हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 46 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 46 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच

कस्यचित् त्वथ कालस्य स्मृत्वा गोपेषु सौहृदम्।
जगामैको व्रजं राम: कृष्णरस्यालनुमते स्थित:।।1।।

स गतस्तत्र रम्याणि ददर्श विपुलानि वै।
भुक्तपूर्वाण्यरण्यानि सरांसि सुरभीणि च।।2।।

स प्रविष्टतस्तु वेगेन वं व्रजं कृष्णिपूर्वज:।
वन्येवन रमणीयेन वेषेणालंकृत: प्रभु:।।3।।

स तानभाषत प्रीत्याण यथापूर्वमरिंदम:।
गोपांस्तेनैव विधिना यथान्यायं यथावय:।।4।।

तथैव प्राह तान् सर्वांस्तथैव परिहर्षयन्।
तथैव सह गोपीभिर्योजयन् मधुरा: कथा:।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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