हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षष्ठम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उस गोव्रज में रहकर गोपकर्म करते हुए नन्द गोप के बहुत दिन बीत गये। वहाँ उन दोनों बालकों का उन्होंने नामकरण संस्कार कर दिया। तदन्तर वे दोनों भाई वहाँ बड़े सुख से रहने और दिनों दिन बढ़ने लगे। उनमें बड़े का नाम ‘संकर्षण’ था और छोटे का ‘कृष्ण’ दूसरे शरीर में आये हुए भगवान श्रीहरि ही 'कृष्ण' नाम से विख्यात हुए। उनकी अंगकान्ति श्या़म मेघ की भाँति सांवली थी। जैसे समुद्र में मेघ की वृद्धि होती है, उसी प्रकार वे गौओं के बीच में रहकर बढ़ने लगे। यशोदा अपने पुत्र को हृदय से चाहने वाली थी। एक दिन की बात है, लाला कन्हैया छकड़े के नीचे सोया था, उसे उसी अवस्था में छोड़कर यशोदा मैया यमुना जी में नहाने के लिये चली गयीं। फिर तो लाला कन्हैया बाल-लीला करता हुआ अपने दोनों हाथ-पैर फेंकने लगा। पैरों को ऊँचे तक फैलाकर मधुर स्वर में रोने लगा। (अब उसके मन में मैया के दूध पीने की इच्छा जाग उठी, फिर तो) उसने वहाँ एक ही पैर के धक्के से छकड़े को औंधा पलट दिया। यह सब उसने स्तनपान की इच्छा से ही किया था। यह अद्भुत लीला करके वह रोने लगा। इसी बीच में भय से व्याकुल हुई यशोदा मैया नहाकर लौट आयी। उसके स्तनों से दूध झर रहा था, जिसका बछड़ा बंधा हुआ हो, उस गाय की भाँति वह अपने बच्चे को स्तन पिलाने के लिये उत्सुक थी। उसने देखा, बिना आंधी-पानी के ही यह छकड़ा उलटा पड़ा है। फिर तो ‘हाय! हाय!’ करके तुरंत ही लाला को गोद में उठा लिया। वह इस बात को न जान सकी कि छकड़े का वास्तव में उलट जाने का क्या कारण है? ‘भगवान मेरे लाल को सकुशल रखें'- ऐसा कहकर मैया पुत्र-प्रेम में मग्न हो गयी हो गयी और बच्चे को कहीं चोट तो नहीं लगी- इस आशंका से उसको भय भी हुआ। (वह बच्चे की ओर देखकर बोली) ‘बेटा! तुम्हारे पिता बड़े क्रोधी हैं। तुम छकड़े के नीचे सोये थे और वह अकस्मात उलट गया। यह सुनकर वे न जाने मुझे क्या-क्या कहेंगे? लाला! मुझे नहाने से क्या मिलता? यदि तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा वह स्नान तो दु:स्नान ही था। मुझे नदी तट पर जाने की भी क्या आवश्यकता थी वहाँ से लौटकर देखती हूँ तो छकड़ा उलटा पड़ा है और तुम खुले आकाश के नीचे सोये हो! (हाय! हाय! यह सब कैसे हुआ?)' इसी समय गौओं के साथ वन में विचरकर नन्द जी व्रज के निकट आये। उन्होंने गेरूएं रंग के दो वस्त्र धारण कर रखे थे उन्होंने देखा, छकड़ा औंधा पड़ा है। उस पर लदे हुए सारे बर्तन, घड़े, माट और मटके चकनाचूर हो गये हैं। जुआ निकलकर दूर जा पड़ा है। धुरा टूट गया है और पहिया मुकुट के समान ऊपर को उठ गया है। यह देखकर वह डर गये और जल्दी -जल्दी पैर बढ़ाते हुए सहसा घर आ पहुँचे। उस समय उनके नेत्रों में आंसू भरे हुए थे। वे बार-बार पूछने लगे, ‘महर! मेरा लाला कुशल से तो है न? फिर बेटे को स्तनपान करते देख उनके जी में जी आया। उन्होंने पुन: पूछा, ‘महर! बैलों में लड़ाई तो हुई नहीं, फिर यह छकड़ा कैसे उलट गया? यशोदा ने भयभीत होकर गद्गद वाणी में कहा- ‘नाथ! मैं नहीं जानती कि किसने छकड़ा उलट दिया। सौम्य! मैं तो कपड़े धोने के लिये यमुना जी के तट पर गयी थी। लौटकर देखती हूँ तो छकड़ा धरती पर औंधा पड़ा है’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज