हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 57 श्लोक 1-12

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

कालयवन का वध

जनमेजय ने पूछा- भगवान! मैं बु‍द्धिमान यदुश्रेष्ठ महात्‍मा वसुदेवनन्‍दन भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र विस्‍तारपूर्वक सुनना चाहता हूँ। भगवान मधुसूदन किसलिये मथुरा छोड़कर चले गये? वह तो मध्‍यदेश का ककुद (सर्वोत्तम स्‍थान), लक्ष्‍मी का अद्वितीय धाम, पृथ्‍वी का शृंग, सुन्‍दर, दर्शनीय, प्रचुर धन-धान्‍य से सम्‍पन्‍न, आर्यों का निवास स्‍थान, जल की अधिकता से सुशोभित तथा सभी अधिष्‍ठानों में सबसे उत्तम है। द्विजश्रेष्ठ, दशार्हकुलन्‍दन श्रीकृष्‍ण ने बिना युद्ध के ही उसे क्‍यों छोड़ दिया? तथा कालयवन ने भी श्रीकृष्‍ण के साथ क्‍या बर्ताव किया? महाबाहु, महायोगी और महातपस्‍वी भगवान जनार्दन ने जलरुपी दुर्ग से घिरी हुई द्वारका में जाकर क्‍या किया? कालयवन का पराक्रम कैसा था? किसने उस बलशाली वीर को जन्‍म दिया था, जिसे असहाय समझकर भगवान श्रीकृष्‍ण द्वारका से हट गये थे?

वैशम्‍पायन जी ने कहा- राजन! वृष्णि और अन्‍धकवंशी यादवों के गुरु (पुरोहित) महामना गार्ग्‍यमुनि पहले नियमपूर्वक ब्रह्मचारी रहकर किसी साधना में लगे हुए थे। वे उन दिनों स्‍त्री-संसर्ग से दूर रहते थे। विकार रहित ऊर्ध्‍वरेता ब्रह्मचारी के रूप में रहते हुए उन गार्ग्‍यमुनि पर उन्‍हीं के साले ने राजसभा में नपुंसक होने का कलंक लगाया। राजन! जिन्‍होंने अजित परमात्‍मा को भी जीत लिया था, उस नगर में इस प्रकार कलंकित होने पर उन्‍होंने स्‍त्री की इच्‍छा तो नहीं की, परंतु क्रोधपूर्वक अत्‍यन्‍त कठोर तपस्‍या आरम्‍भ कर दी। वे गार्ग्‍यमुनि अचिन्‍त्‍यस्‍वरूप शूलपाणि महादेव जी की आराधना करते हुए बाहर वर्षों तक केवल लोहे का चूर्ण खाकर रहे। तब भगवान रुद्र ने उन्‍हें वर के रूप में पूर्ण तेजस्‍वी पुत्र प्रदान किया, जो युद्ध में वृष्णि और अन्‍धक-वंश के वीरों का भी निग्रह करने में समर्थ था। इसी समय यवनों के अधिपति एक राजा ने उस पुत्र प्रदान करने वाले वर का वृत्तान्‍त सुना। वह दैवयोग से पुत्रहीन था और पुत्र पाने की इच्‍छा रखता था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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