हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 39 श्लोक 1-13

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनचत्वा्रिंश अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

बलराम और श्रीकृष्ण का पुरी और पुरवासियों की रक्षा के लिये मथुरा से दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान, परशुराम जी से उनकी भेंट तथा उन दोनों को गोमन्त पर्वत पर चलने के लिये उनकी सलाह

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! विकद्रु की बात सुनकर महायशस्वी वसुदेव संतुष्टचित्त से इस प्रकार बोले- 'श्रीकृष्ण! जो राजनीति के छ: गुणों से युक्त बात वाले अथवा उन छहों गुणों के उपयोग का अवसर बताये, वह राजा है। जो मन्त्राेर्थत्वस (गुप्त मन्त्रणा का प्रयोजन एवं महत्त्व) समझता हो, वह राजा है। बुद्धिमान विकद्रु ने तत्त्व और हित की बात बतायी है। यदुश्रेष्ठ! विकद्रु ने उन राजधर्मों का प्रतिपादन किया है, जो सत्य होने के साथ ही जगत के लिये हितकर हैं। अब तुम्हें जो हितकर जान पड़े, वह करो।'

अपने पिता वसुदेव तथा महात्मा विकद्रु का यह कथन सुनकर पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने एकाग्रचित्त होकर यह उत्तम बात कही- 'आप लोगों ने वैर के मूल-कारण शत्रु के पराक्रम, न्यायोचित बर्ताव, शास्त्र की आज्ञा तथा दैववश भविष्य में होने वाले कार्य पर दृष्टि रखते हुए जो कुछ कहा है, वह सब मैंने सुन लिया। अब उसका उत्तर सुनिये और सुनकर यदि ठीक जंचे तो उसके ग्रहण कीजिये। इसमें संदेह नहीं कि राजा को राजनीति के अनुसार व्यवहार करना चाहिये। उसके लिये यह उचित है कि संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और समाश्रय- इन छ: गुणों का क्रमश: सदा चिन्तन करता रहे। विद्वान पुरुष को चाहिये कि वह बलवान शत्रु के समीप न ठहरे। समय का ज्ञान रखने वाला पुरुष बलवान शत्रु से अपनी रक्षा करने के लिये स्थान छोड़कर हट जाय। यदि वह शत्रुसेना का सामना करने के लिये समर्थ हो तो युद्ध का बोझ उठाये। मैं शक्तिशाली होकर भी असमर्थ की भाँति इस वर्तमान मुहूर्त में भैया बलराम जी के साथ जीवन की रक्षा के लिये यहाँ से पलायन करूंगा।

यहाँ से प्रस्थान करने के बाद मैं आर्य बलराम के साथ अपने-आपको ही उनका दूसरा साथी बनाकर उस अक्षय शोभा सम्पन्न दक्षिणापथ में प्रवेश करूंगा, जो सह्यपर्वत से मिला-जुला है। वहाँ हम दोनों भाई एक साथ रहकर करवीरपुर, रमणीय क्रौञ्चपुर तथा पर्वत श्रेष्ठ गोमन्त का दर्शन करेंगे। हम लोगों का दक्षिण-गमन सुनकर विजय से सुशोभित होने वाला राजा जरासंध बल के घमण्ड में आकर मथुरापुरी में प्रवेश न करके हमारा पीछा ही करेगा। तत्पाश्चात हमारा अनुसरण करता हुआ वह राजा सेवकों सहित सह्याचल के वनों में ही जा पहुँचेगा और हम दोनों को पकड़ लेने के लिये पूरा प्रयत्न करेगा।


Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः