हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 96 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 96 श्लोक 1-5

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वैशम्पातयन उवाच

सत्रावसाने च मुने: कश्यपस्यातितेजस:।
जग्मुवर्देवासुरा: स्वानि स्थाेनान्यतमितविक्रमा:।।1।।

वज्रनाभोऽपि निर्वृत्तेर सत्रे कश्यपमभ्यगात।
त्रैलोक्यपविजयाकांक्षी तमुवाचाथ कश्यप:।।2।।

वज्रनाभ निबोध त्वं श्रोतव्यं यदि चेन्म‍म।
वस वज्रपुरे पुत्र स्वाजनेन समावृत:।।3।।

तपसाभ्यपधिक: शक्र: शक्तश्चैमव स्वंभावत:।
ब्रह्मण्यरश्च कृतज्ञश्चत ज्ये्ष्ठम: श्रेष्ठवतमोगुणै:।।4।।

राजा कृत्न् स्यत जगत: पात्रभूत: सतां गति:।
सम्प्रातप्तोव लोकराज्यंय स सर्वभू‍तहिते रत:।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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