हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 11 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 11 श्लोक 1-5

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वैशम्‍पायन उवाच
कदाचित् तु तदा कृष्‍णो विना संकर्षणेन वै।
चचार तद् वनं रम्‍यं कामरूपी वरानन:।।1।।

काकपक्षधर: श्रीमाञ्छयाम: पद्मदलेक्षण:।
श्रीवत्‍सेनोरसा युक्‍त: शशांक इव लक्ष्‍मणा।।2।।

सांगदेनाग्रहस्‍तेन पंकजोद्भिन्‍नवर्चसा।
सुकुमाराभिताम्रेण क्रान्‍विक्रान्‍तगामिना।।3।।

पीते प्रीतिकरे नृणां पद्मकिंञ्जल्‍कसप्रभे।
सूक्ष्‍मे वसानो वसने ससंध्‍य इव तोयद:।।4।।

वत्‍सव्‍यापारयुक्‍ताभ्‍यां व्‍यग्राभ्‍यां गण्‍डरज्‍जुभि:।
भुजाभ्‍यां साधुवृत्‍ताभ्‍यां पूजिताभ्‍यां दिवौकसै:।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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