हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 107 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 107 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच
शम्बस्तु तत: क्रुद्धो मुद्गरं तं समाददे।
मुद्गरे गृह्यमाणे तु द्वादशार्का: समुत्थिता:।।1।।

पर्वताश्चलिता: सर्वे तथैव वसुधातलम् ।
उन्मार्गा: सागरा याता: संक्षुब्धाश्चपि देवता:।।2।।

गृध्रचक्राकुलं व्योम उल्कापातो बभूव ह।
ववर्ष रुधिरं देव: परुषं पवनो ववौ।।3।।

एवं दृष्ट्वा महोत्पातान् प्रद्युम्न : स त्वारान्वित:।
अवतीर्य रथाद् वीर: कृतांजलिपुट: स्थित:।।4।।

देवीं सस्मार मनसा पार्वतीं शंकरप्रियाम्।
प्रणम्य शिरसा देवीं स्तोतुं समुपचक्रमे।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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