वैशम्पायन उवाच
तानागतान् विदित्वावथ श्रृगालो युद्धदुर्मद:।
पुरस्य धर्षणं मत्वा निर्जगामेन्द्राविक्रम:।।1।।
रथेनादित्यवर्णेन भास्वता रणगामिना।
आयुधप्रतिपूर्णेन नेमिनिर्घोषहासिना।।2।।
मन्दराचलकल्पेिन चित्राभरणभूषिणा।
अक्षय्यसायकैस्तूपणै: पूर्णेनार्णवघोषिणा।।3।।
हर्यश्वेयनाशुगतिनासक्तेचन शिखरेष्वरपि।
हेमकूबरगर्भेण दृढाक्षेणातिशोभिना।।4।।
सुबन्धुगरेण दीप्तेन पतत्त्रिवरगामिना।
खगतेनेव शक्रस्य हर्यश्वेन रथाद्रिणा।।5।।