हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 97 श्लोक 1-20

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्‍तनवतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

प्रद्युम्‍न द्वारा वज्रनाभ का वध तथा प्रद्युम्‍न आदि के पुत्रों का राज्‍याभिषेक

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्‍तर जब जगत के नेत्ररूप भगवान सूर्य के उदित हुए दो घड़ी बीत गयी, तब सर्पशत्रु गरुड़ के द्वारा भगवान श्रीहरि वहाँ प्रकट हुए। कुरुनन्‍दन! हंस, वायु और मन से भी अत्‍यन्‍त शीघ्रतर गति से गमन करने वाले पक्षी गरुड़ आकाश में इन्‍द्र के समीप खड़े हो गये। श्रीकृष्ण ने देवराज इन्‍द्र के समीप जाकर उनके साथ यथोचित रीति से मिलकर अपना पांचजन्‍य नामक शंख बजाया, जो दैत्‍यों का भय बढ़ाने वाला था। शत्रु-वीरों का संहार करने वाले प्रद्युम्न वह शंखध्‍वनि सुनकर तुरंत वहाँ आये। उस समय श्रीकृष्‍ण ने उनसे कहा- 'बेटा! वज्रनाभ को मार डालो और इस कार्य में शीघ्रता करो। उन्‍होंने पुन: प्रेरित करते हुए कहा- 'गरुड़ पर चढ़कर जाओ।' वीर प्रद्युम्न ने उन दोनों श्रेष्‍ठ देवताओं को नमस्‍कार करके वैसा ही किया। वीर! भरतनन्‍दन! नरेश्‍वर! तब वे मन के समान वेगशाली गरुड़ के द्वारा तुरंत ही महान द्वन्‍द्व युद्ध करने वाले वज्रनाभ के निकट जा पहुँचे। सम्‍पूर्ण अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता तथा निन्‍दा रहित वीर प्रद्युम्‍न गरुड़ पर स्थिर भाव से बैठकर युद्ध के मुहाने पर वज्रनाभ को पीड़ा देने लगे। गरुड़ पर बैठे हुए ही महामना श्रीकृष्‍णकुमार प्रद्युम्‍न ने वज्रनाभ की छाती में गदा द्वारा प्रहार किया। उनसे आहत होकर वह वीर दैत्‍य मूर्च्छित हो गया। उसने मुँह से बहुत-सा रक्‍त वमन किया। उसे चक्‍कर आने लगा और वह मृतकतुल्‍य हो गया।

तब रणदुर्जय श्रीकृष्‍णकुमार ने उससे कहा- 'तुम आश्वस्‍त हो जाओ।' इससे सचेत होकर उस वीर ने प्रद्युम्‍न से इस प्रकार कहा- 'बहुत अच्‍छा'। यादव! तुम शत्रु होते हुए भी पराक्रम के द्वारा मेरे लिये स्‍पृहणीय हो। अब यह मेरी ओर से तुम्‍हारे प्रहार का उत्‍तर देने का अवसर आया है। अत: महाबली वीर! तुम स्थिर हो जाओ। ऐसा कहकर सैकड़ों मेघों की गर्जनाओं के समान महान सिंहनाद करके बहुत-से कण्‍टकों तथा घण्‍टों वाली गदा को उसके वेगपूर्वक चलाया। नरेश्‍वर! उस गदा ने प्रद्युम्‍न के ललाट पर गहरा आघात किया। अत: यदुनन्‍दन प्रद्युम्‍न अधिक रक्‍त वमन करते हुए मूर्च्छित हो गये। उन्‍हें अचेत हुआ देख शत्रुनाशन भगवान श्रीकृष्‍ण ने पुत्र को आश्वासन देने के लिये समुद्र जल से प्रकट हुए अपने पांचजन्‍य नाम शंख को बजाया। पांचजन्य के शब्‍द से महाबली प्रद्युम्‍न को आश्‍वस्‍त हुआ देख सब लोगों को बड़ी प्रसन्‍नता हुई और श्रीकृष्‍ण बहुत प्रसन्‍न हुए। भारत! श्रीकृष्‍ण की इच्छा से उनका चक्र प्रद्युम्‍न के हाथ में चला गया। उसमें सहस्त्रों अरे थे और उसके नेमि या प्रान्‍त भाग में छुरे लगे हुए थे। वह चक्र दैत्‍यसमूहों के वंश का विनाश करने वाला था। भारत! श्रीकृष्‍ण के पुत्र प्रद्युम्न ने देवराज इन्‍द्र और महात्‍मा श्रीकृष्‍ण को प्रणाम करके उस दैत्‍य के विनाश के लिये वह चक्र चला दिया। श्रीकृष्‍णकुमार प्रद्युम्‍न के हाथ से छोड़े गये उस चक्र ने उस समय समस्‍त दैत्‍यों के देखते-देखते वज्रनाभ के मस्‍तक को उसके धड़ से काट गिराया। महल की छत पर खड़े हुए गद ने अपने को मार डालने की इच्‍छा वाले युद्धोन्‍मत्‍त भयानक दैत्‍य सुनाभ का, जो समरांगण में विजय के लिये प्रयत्‍नशील था, वध कर डाला। शत्रुमर्दन साम्‍ब ने भी समर के मध्‍यभाग में खड़े हुए असुरों को अपने पैने बाणों द्वारा यमराज के घर भेज दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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