हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 55 श्लोक 1-13

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

गरुड़ का श्रीकृष्ण के निवास योग्य भूमि देखने के लिये जाना, मथुरा में राजेन्द्र श्रीकृष्ण का स्वागत, श्रीकृष्ण द्वारा राजा उग्रसेन तथा मथुरावासियों का सत्कार एवं गरुड़ का लौटकर कुशस्थली में विषय में बताना

जनमेजय ने पूछा- इन्द्र के तुल्य पराक्रमी भगवान श्रीकृष्ण जब विदर्भ नगर से मथुरा को गये, उस समय अपने साथ गरुड़ को क्यों ले गये और गरुड़ ने वहाँ जाकर कौन-सा कार्य सम्प्न्न किया? महामुने! ब्रह्मन! भगवान श्रीकृष्ण महाबली गरुड़ पर आरूढ़ क्यों नहीं हुए? यह मेरा संशय है। आप इसका ठीक-ठीक समाधान करें।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! महातेजस्वी विनतानन्दन गरुड़ ने विदर्भ नगर में जाकर ऐसा कार्य किया था, जो मानवीय शक्ति से परे की वस्तु है। प्रभो! मधुसूदन श्रीकृष्ण विदर्भ नगर से चलकर अभी मार्ग में ही थे, मथुरापुरी नहीं पहुँचे थे। तभी महातेजस्वी गरुड़ ने मन-ही-मन विचार किया कि देवाधिदेव श्रीहरि ने सब राजाओं के सामने जो कहा था कि ‘मैं भोजराज उग्रसेन के द्वारा पालित रमणीय नगरी मथुरा को जाऊंगा।’ उनके उस कथन के अन्त में ‘चलूंगा’ यह कहकर मैंने भी चलना स्वीकार कर लिया था। यही सोचते हुए गरुड़ को एक कार्य सूझ गया और उन तेजस्वी पक्षिराज ने दोनों हाथ जोड़ भगवान को प्रणाम करके इस प्रकार कहा-

गरुड़ बोले- देव! मैं राजा रैवत की कुशस्थली नगरी को जाऊंगा। वहीं रमणीय रैवत गिरि है, जहाँ नन्दन के समान मनोहर वन है। रुक्मी ने पर्वत और समुद्र तट का आश्रय लेकर बसी हुई उस रमणीय नगरी को उजाड़ दिया है। वहाँ हरे-भरे वृक्ष, गुल्म और लताऐं फैली हुई हैं। फूलों के पराग उसकी शोभा बढ़ाते हैं। वहाँ हाथी और सर्प भरे हुए हैं। रीछ तथा वानर उसका सेवन करते हैं। वाराह, भैंसे तथा मृगों के अनेकानेक झुंड वहाँ वास करते हैं। उस भूमि का सब ओर से निरीक्षण करके मैं यह देखूंगा कि वह आपके निवास के लिये उपयुक्त हैं या नहीं। यदि वह आपके योग्य रमणीय या उत्तम नगरी हो सकेगी, तो वहाँ के कण्टकों को (आपके मार्ग का अवरोध करने वाले शत्रुओं को) उखाड़ फेकूंगा और आपके पास लौट आऊंगा।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इस प्रकार अपना अभिप्राय निवेदन करके देवश्वर जनार्दन को प्रणाम करने के अनन्तर बलवान पक्षीराज गरुड़ पश्चिम दिशा की ओर चल दिये। इधर श्रीकृष्ण भी यदुवंशियों के साथ मथुरापुरी में जा पहुँचे। उस समय राजा उग्रसेन, नर्तकियां तथा मथुरा के नागरिक सबने आगे बढ़कर हुष्ट-पुष्ट मनुष्यों के साथ आये हुए श्रीकृष्ण का स्वागत-सत्कार किया।


Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः