हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 41 श्लोक 1-12

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

बलराम के पास वारुणी, कान्ति एवं श्री (शोभा) इन देवांगनाओं का आमगन, गरुड़ के द्वारा श्रीकृष्ण को वैष्णव मुकुट की प्राप्ति, श्रीकृष्ण का बलराम से वार्तालाप तथा जरासन्ध की सेना का निरीक्षण करके अपने-आप से ही मानसिक उद्गार प्रकट करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! परशुराम जी के चले जाने पर यादवकुल का भार वहन करने वाले वे श्रीकृष्ण और बलराम इच्छानुसार रूप धारण करके गोमन्त पर्वत के रमणीय शिखर पर विचरन करने लगे। उन दोनों के वक्ष:स्थलों में वन माला शोभा पा रही थी। दोनों क्रमश: नीले पीले वस्त्र धारण करके अपने गौर–श्याम शरीर से आकाश में स्थित हुए दो मेघों के समान शोभा पा रहे थे। पर्वतीय धातुओं से अपने अंगों का श्रृंगार करके उस पर्वत के शिखर पर खड़े हुए दोनों नवयुवक वीर क्रीड़ा की लालसा लिए कमनीय वनों में विचरण करने लगे। वे उस पर्वत पर ज्योतिर्मय नक्षत्रों में श्रेष्ठ चंद्रमा के उदय की शोभा देखते और ग्रहों के उदय–अस्त देखा करते थे। एक दिन परमपराक्रमी श्रीमान संकर्षण श्रीकृष्ण के बिना ही उस पर्वत के शिखर पर विचर कर रहे थे। वे स्वयं भी पर्वत के समान प्रतीत होते थे। घूमते–घूमते एक खिले हुए कदम्ब की मनोहर छाया में बैठ गए।

उस समय कदम्ब की मधुर मन्द गंध से वासित वायु उन्हें सुखपूर्वक व्यजन डुलाने लगी। वह मंद–मंद वायु बहकर जब बलराम जी की सेवा कर रही थी, उस समय उनकी घ्राणेन्द्रिय में मधु का स्पर्श करके आए हुए सुगन्धित समीर ने प्रवेश किया। उस समय उनके भीतर वारुणी (मधु या अमृत) की तृष्णा का आवेश हुआ। फिर तो दूसरे दिन मतवाले पुरुष की भाँति उनका मुंह सूखने लगा। उन्हें पूर्वकाल में किए गए अमृत पान का स्मरण हो आया। वे तृषित होकर उस अमृत की खोज करने लगे।

तब उन्होंने उस वृक्ष की ओर देखा वर्षाकाल में उस खिले हुए कदम्ब पर जो मेघों का बरसाया हुआ जल गिरा था, वह उसके कोटर में मनोहर सुधा के रूप में प्रकट हो गया। बलराम जी का हृदय प्यास से घबरा उठा था। वे पिपासा पीड़ित पुरुष की भाँति उस अमृत को बार–बार पीने लगे। उसको अधिक पी लेने के कारण उन पर मोह (नशा) सा छा गया, जिससे उन प्रभावशाली का शरीर कुछ लड़खड़ाने–सा लगा। मधु से मत्त हुए बलराम का मुख कुछ झूमता–सा प्रतीत हुआ, नेत्र किंचित चंचल हो उठे। उस मुख की प्रभा शरत्काल के चंद्रमा की भाँति सुशोभित होने लगी।

Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः