हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 65 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 65 श्लोक 1-5

Prev.png

 
जनमेजय उवाच

प्रादुर्भावे मुनिश्रेष्‍ठ माथुरे चरितं शुभम्।
श्रृण्‍वन्‍नैवाधिगच्‍छामि तृप्तिं कृष्‍णस्‍य धीमत:।।1।।

द्वारकायां निवसत: कृतदारस्‍य षड्गुणम्।
चरितं ब्रूहि कृष्‍णस्‍य सर्वं हि विदितं तव।।3।।

वैशम्‍पायन उवाच
जनमेजय कृष्‍णस्‍य कृतदारस्‍य भारत।
निबोध चरितं चित्रं तस्‍यैव सदृशं प्रभो।।3।।

प्राप्‍तदरो महातेजा वासुदेव: प्रतापवान्।
रुक्मिण्‍या सहितो देव्‍या ययौ रैवतकं नृप।।4।।

उपवासावसानं हि रुक्मिण्‍या: प्रतिपूजयन्।
तर्पयिष्‍यन् स्‍वयं विप्रांञ्जगाम मधुसूदन:।।5।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः