हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षण्णवतितम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अत्यन्त तेजस्वी कश्यप मुनि का या समाप्त होने पर अमित पराक्रमी देवता और असुर अपने-अपने स्थान को गये। यज्ञ पूर्ण होने पर वज्रनाभ भी त्रिभुवन-विजय की अभिलाषा लेकर कश्यप जी के पास गया। तब कश्यप जी ने उससे कहा- 'बेटा वज्रनाभ! यदि मेरी बात सुनने और मानने योग्य हो तो ध्यान देकर सुनो तुम अपने स्वजनों से घिरे रहकर वज्रपुर में ही निवास करो। इन्द्र तपस्या में तुमसे बढ़े-चढ़े हैं। स्वभाव से ही शक्तिशाली हैं। ब्राह्मणभक्त, कृतज्ञ, भाईयों में ज्येष्ठ और उत्तम गुणों की दृष्टि से श्रेष्ठतम हैं। वे सम्पूर्ण जगत के राजा, सुपात्र और सत्पुरुषों के आश्रय हैं तथा तीनों लोकों का राज्य पाकर समस्त प्राणियों के हित में तत्पर रहते हैं। वज्रनाभ! तुम उन्हें जीत नहीं सकते। जीतने के प्रयत्न में स्वयं ही मारे जाओगे। साँप को पैरों से ठुकराने वाले की भाँति शीघ्र ही नष्ट हो जाओगे। भारत! वज्रनाभ का सारा शरीर काल के पाश से बँधा हुआ था। जैसे मरने वाले रोगी को दवा अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार उसे कश्यप जी की बात पसंद नहीं आयी। अत्यन्त खोटी बुद्धि वाले उस दुर्जय असुर ने लोकस्रष्टा कश्यपजी को प्रणाम करके त्रिभुवन-विजय का कार्य आरम्भ करने का विचार किया। प्रजानाथ! सजातीय बन्धुओं तथा बहुत-से मित्रों को ही योद्धाओं के रूप में साथ लेकर उसने विजय की इच्छा से पहले स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। इसी बीच में महाबली श्रीकृष्ण और इन्द्र दोनों देवताओं ने वज्रनाभ-वध के लिये संदेश देकर हंसों को भेजा। वज्रपुर में एकत्र हुए महाबली महामनस्वी प्रमुख यादव-वीर हंसों के मुख से वह संदेश सुनकर आपस में सलाह करके इस प्रकार विचार करने लगे। इसमें संदेह नहीं कि आज प्रद्युम्न के द्वारा वज्रनाभ का वध अवश्य होना चाहिये। परंतु वज्रनाभ और उसके भाई दोनों की कन्याएं भक्तिपूर्वक हम लोगों की भार्याएं हो गयी हैं। व सब-की-सब हर तरह से हमारा शुभचिन्तन करती हैं। इस समय वे तीनों दान-कन्याएं गर्भवती हैं; अत: अब हमें क्या करना चहिये? उन तीनों का प्रसवकाल शीघ्र ही आने वाला है। इस विषय में भली-भाँति परस्पर विचार करके उन महाबली यादवों ने उस समय हंसों से कहा- 'तुम्हें भगवान श्रीकृष्ण और इन्द्र के पास जाकर यहाँ की प्रयोजनयुक्त सारी बातें कहनी चाहिये।' प्रभो! तब हंसों ने वहाँ जाकर उन दोनों देवताओं से वहाँ की सारी बातें यथार्थरूप से कह सुनायीं। फिर उन दोनों ने हंसों को यह संदेश कि 'यादवों! तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिये। तुम्हारे उन स्त्रियों के गर्भ से इच्छानुसार रूप धारण करने वाले पुत्र उत्पन्न होंगे; जो अपने उत्तम गुणों के कारण स्पृहणीय होंगे। वे उत्तम पुत्र गर्भ में रहते समय ही अंगों सहित सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लेंगे। इसी प्रकार उन्हें नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों तथा भविष्य में होने वाली सारी बातों का स्वत: ज्ञान हो जायेगा। वे जन्म लेने पर तत्काल ही तरुण एवं अच्छे पण्डित हो जायँगे’। प्रभो! उनके ऐसा कहने पर वे हंस पुन: वज्रपुर को गये। वहाँ उन्होंने यादवकुमारों से देवराज इन्द्र और श्रीकृष्ण का संदेश कह सुनाया। उस समय प्रभावती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो अपने पिता के समान ही सर्वगुण सम्पन्न था। भारत! वह तत्काल युवावस्था को प्राप्त हो गया तथा उसमें सर्वज्ञता भी थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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