हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 59 श्लोक 1-13

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा रुक्मिणी का हरण तथा यादव वीरों का जरासंध एवं शिशुपाल आदि के साथ घोर युद्ध

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इसी समय प्रतापी जरासंध चेदिराज का प्रिय करने की इच्छा से राजाओं को एकत्र करने का उद्योग किया। उसने सर्वत्र यह समाचार भेज दिया कि ‘भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी तथा राजा शिशुपाल का विवाह होने वाला है। इसमें केवल सुवर्ण के आभूषणों का उपयोग होगा। दन्तवक्त्र के पुत्र अमित तेजस्वी सुवक्त्र को, जो सैकड़ों मायाओं के ज्ञान एवं प्रयोग में कुशल तथा युद्ध में सहस्र नेत्रधारी इन्द्र के तुल्य पराक्रमी था जरासंध ने जोर देकर बुलवाया।

पौण्ड्रक वासुदेव के महाबली और पराक्रम सम्पन्न पुत्र सुदेव को भी, जो पृथक एक अक्षौहिणी सेना का अधिपति था जरासंध ने दबाव डालकर ही बुलवाया था। एकलव्य के महाबली एवं पराक्रमी पुत्र को, पाण्ड्यराज के पुत्र को, कलिंग देश के अधिपति को, श्रीकृष्ण ने जिसका अप्रिय किया था, उस राजा वेणुदारि को, क्रथपुत्र अंशुमान एवं श्रुतधर्मा को, शुत्रओं को पराजित करने वाले कलिंगराज को, गान्धार-नरेश को तथा महापराक्रमी कौशाम्बीपति को भी जरासंध ने बलपूर्वक बुलाने की चेष्टा की थी। विशाल सेना से युक्त राजा भगदत्त, शल, महाबली शाल्व, बहुत बड़ी सेना वाले भूरिश्रवा तथा पराक्रमी कुन्तिवीर्य- ये सब लोग स्वयं ही वर शिशुपाल की बारात करने के लिये भोजराज भीष्मक के भवन में पधारे थे।

जनमेजय ने पूछा- द्विजश्रेष्ठ! वेदवेत्ताओं में उत्तम कान्तिमान राजा रुक्मी किस देश और किस कुल में उत्पन्न हुआ था।

वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! राजर्षि यादव के विदर्भ नामक एक पुत्र था, जो विन्ध्यगिरि के दक्षिण पार्श्व में विदर्भ नगरी में निवास करता था विदर्भ के क्रथ, कैशिक आदि बहुत-से महाबली पुत्र हुए, जो पराक्रम सम्पन्न तथा पृथक-पृथक वंशों के प्रवर्तक नरेश थे। राजर्षि यादव के ही वंश में भीम से वृष्णिवंशी राजाओं की उत्पत्ति हुई थी। क्रथ के वंश में अंशुमान और कैशिक के वंशज भीष्मक हुए। भीष्मक को ही राजा लोग हिरण्यरोमा तथा दाक्षिणात्येश्वर कहते हैं, जिन्होंने कुण्डिनपुर में रहकर अगस्त्य मुनि के द्वारा सुरक्षित दिशा दक्षिण का शासन किया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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