हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 97 श्लोक 21-44

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्‍तनवतितम अध्याय: श्लोक 21-44 का हिन्दी अनुवाद

महान असुर वीर वज्रनाभ के मारे जाने पर नारायण (श्रीकृष्‍ण) के भय से पीड़ित हुआ वीर निकुम्‍भ भी षट्पुर को चला गया। जब देवद्रोही महान असुर वज्रनाभ का संहार हो गया, तब महात्‍मा श्रीकृष्‍ण और इन्‍द्र दोनों वज्रपुर में उतरे। उस समय उन दोनों श्रेष्‍ठ देवताओं ने वहाँ प्राप्‍त हुए दु:ख और शोक का शमन किया। वहाँ बालकों से लेकर बूढ़े तक सभी भय से पीड़ित थे। उन सबको उन्‍होंने सान्‍त्‍वना दी। नरेश्‍वर! उस समय महाबली महात्‍मा इन्‍द्र और उपेन्‍द्र ने भविष्‍य और वर्तमान के विषय में परस्‍पर सलाह करके बृहस्‍पति के मत का अनुसरण करते हुए वज्रनाभ के उस राज्‍य को चार भागों में बांट दिया। जनेश्‍वर! उन्‍होंने एक चौथाई भाग तो जयन्‍त के पुत्र विजय को दे दिया, दूसरा प्रद्युम्न के पुत्र को, तीसरा साम्‍ब के पुत्र को दिया और शेष चौथा भाग गद के पुत्र चन्‍द्रप्रभ को अर्पित कर दिया। प्रजानाथ! वज्रनाभ के अधिकार में चार करोड़ से कुछ अधिक ग्राम थे तथा एक हजार शाखानगर थे, जो वज्रपुर के समान ही वैभवशाली थे। हर्ष में भरे हुए इन्‍द्र और श्रीकृष्‍ण ने वहाँ की सभी वस्‍तुओं के चार भाग कर लिये थे। वीर जनमेजय! वीर इन्‍द्र और केशव ने वहाँ प्राप्‍त हुए कम्‍बल (कालीन), मृगचर्म, वस्त्र तथा भाँति-भाँति के रत्‍नों को भी चार भागों में बाँट दिया। नरेश्‍वर! तदनन्‍तर इन्‍द्र की आज्ञा से वे चारों वीर देव दुन्‍दुभियों की ध्‍वनि के साथ गंगा जी के जल से राजा के पद पर अभिषिक्‍त हुए। इन्द्र और श्रीकृष्‍ण को आनन्दित करने वाले उन चारों महात्‍मा राजकुमारों को स्‍वयं इन्‍द्रदेव तथा बुद्धिमान श्रीकृष्‍ण ने ऋषि समुदाय के‍ निकट अभिषिक्‍त किया।

बुद्धिमान विजय की आकाश में चलने-फिरने की शक्ति तो प्रसिद्ध ही थी; महामनस्‍वी यादवकुमार भी अपनी माताओं के गुण से नियुक्‍त हो आकाश में चल-फिर सकते थे। ऐश्‍वर्यशाली इन्‍द्र ने उन चारों का अभिषेक करके जयन्‍त से कहा- 'वीर! तुम्‍हें इन युद्ध विजयी राजाओं की भी रक्षा करनी चाहिए। अनघ! इनमें एक तो मेरे वंश का प्रवर्तक है और तीन श्रीकृष्‍ण के वंश का विस्‍तार करने वाले हैं। ये सब मेरी आज्ञा से समस्‍त प्राणियों के लिये अवध्‍य होंगे। इनका आकाश में गमनागमन स्‍वत: सिद्ध होगा। स्‍वर्ग में तथा यादवों द्वारा सुरक्षित रमणीय द्वारकापुरी में भी ये आते–जाते रहेंगे। दिग्‍गजों के पुत्र जो हाथी हैं, उच्चै:श्रवा के कुल में उत्‍पन्‍न जो घोड़े हैं तथा विश्‍वकर्मा के बनाये जो रथ हैं, उन सबको इन्‍हें इच्‍छानुसार प्रदान करो। वीर! ऐरावत के पुत्र जो शत्रुंजय और रिपुंजय नामक आकाशगामी हाथी हैं, उन्‍हें साम्‍ब और गद को दे दो; जिससे वे दोनों भीकमुलनन्‍दन वीर यादवों द्वारा सुरक्षित रमणीय द्वारकापुरी में आकाश मार्ग से जा सकें तथा अपने दोनों पुत्रों को देखने के लिये यहाँ भी, जब इच्‍छा हो आ सकें।' ऐसा संदेश देकर ऐश्‍यवर्यशाली देवराज इन्‍द्र स्‍वर्ग को तथा भगवान केशव द्वारकापुरी को चले गये। गद, प्रद्युम्न और साम्‍ब- ये तीनों महाबली वीर वहाँ छ: महीने और रह गये। जब वहाँ का राज्‍य सुदृढ़ हो गया, तब वे द्वारका को गये। देवोपम वीर जनमेजय! आज भी मेरु पर्वत के उत्तर पार्श्‍व में वे राज्‍य विद्यमान हैं और जब तक यह संसार रहेगा, तब तक वे बने रहेंगे। विभो! मौसल युद्ध समाप्‍त होने पर जब समस्‍त वृष्णिवंशी स्‍वर्गलोक को चले गये, तब गद, प्रद्युम्न और साम्‍ब वज्रपुर में गये थे। जनेश्‍वर! वहाँ रहकर लोग लोककर्ता भगवान श्रीकृष्‍ण के प्रसाद से अपने शुभकर्मों द्वारा पुन: स्‍वर्गलोक में चले जाते हैं। नरदेव! यह मैंने तुमसे प्रद्युम्न के उत्‍कर्ष का वर्णन किया है। यह धन, यश तथा आयु प्रदान करने वाला है। इसके पाठ से काम, क्रोध आदि शत्रुओं का नाश भी होता है। पुत्रों और पौत्रों की वृद्धि होती है। आरोग्‍य तथा धन-सम्‍पत्ति की प्राप्ति होती है एवं मनुष्‍य महान यश का भागी होता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में वज्रनाभ वध नामक सत्तानबेवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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