हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 105 श्लोक 1-21

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

प्रद्युम्न द्वरा शम्‍बरासुर की सेना और मन्त्रियों का संहार

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तत्‍पश्चात शम्बरासुर के पुत्रों तथा रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न का घोर रोमान्चकारी युद्ध आरम्भ हुआ। उस समय क्रोध में भरे हुए बड़े-बड़े वेगशाली दैत्य एक ही साथ प्रद्युम्‍न पर बाण, शक्‍ति, फरसे, चक्र, तोमर, कुन्त, भुशुण्डी और मुसलों की वर्षा करने लगे। यह देख श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न अत्यन्त कुपित हो उठे और अपने सर्वास्त्रवर्षी धनुष से छूटे हुए पाँच-पाँच बाणों द्वारा उन्होंने युद्ध के मुहाने पर शत्रु के प्रत्येक अस्‍त्र को क्रोधपूर्वक काट डाला। तब वे सभी असुर पुन: कुपित हो युद्ध के लिये दृढ़निश्‍चय करके प्रद्युम्‍न के वध की इच्‍छा से बाण समूहों की वर्षा करने लगे। इससे अनंगस्वरूप प्रद्युम्‍न का क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने तुरंत ही धनुष हाथ में लेकर अपने बाणों द्वारा शम्बरासुर के दस महाबली पुत्रों को तत्काल काल के गाल में भेज दिया। तत्‍पश्‍चात कुपित हुए पराक्रमी केशव कुमार ने दूसरे भल्ल से बड़ी शीघ्रता के साथ चित्रसेन का मस्तक काट डाला। तदनन्तर जो करने से बच गये, वे सब एक साथ संगठित होकर युद्ध करने लगे। बाणों की वर्षा करते हुए उन्होंने प्रद्युम्‍न को मार डालने की इच्छा से उन पर धावा किया। वे बाणों को धनुष पर रखकर युद्ध के लिये उत्सुक हो उन्हें छोड़ने लगे।

महातेजस्वी प्रद्युम्‍न खेल-सा करते हुए इनके मस्तक काट-काटकर गिराने लगे। समरांगण में जो सौ उत्तम धनुर्धर वीर थे, उन सब का संहार करके वे मन में और भी युद्ध की अभिलाषा लिये संग्राम के मुहाने पर खडे़ हो गये। अपने सौ पुत्रों का वध हुआ सुनकर शम्बरासुर को बड़ा क्रोध हुआ। उसने सारथी को आदेश दिया कि मेरे रथ को जोतो। राजा की यह बात सुनकर सारथी ने पृथ्वी पर मस्तक टेककर प्रणाम किया और सेना सहित रथ को पूरी सावधानी के साथ युद्ध के लिये प्रेरित किया। उस रथ में एक सहस्र मृग जुते हुए थे। वह सर्पों की रस्सियों से जोता गया था। वह रथ व्याघ्रचर्म से ढका हुआ था, उसमें घुँघुरुओं की माला शोभा दे रही थी, वह कृत्रिम पशु-पक्षियों से व्याप्त तथा दस चित्र भोगों से विभूषित था। उसके सारे अंग तारिकाओं के चित्र से व्याप्त थे। सोने का कूबर उस रथ की शोभा बड़ा रहा था। उसका बहुत ही ऊँचा भाग सुन्दर पताकाओं से सुशोभित था। उसमें सिंह के चिह्न वाली उग्र ध्वजा फहरा रही थी। उस रथ का आवरण सुन्दर विभागपूर्वक बना हुआ था। उसमें लोहे के हरसे और वज्रमणि जटित कूबर शोभा पाते थे। उसका शिखर मन्दराचल के समान ऊँचा था। वह सुन्दर चँवर से विभूषित था। नक्षत्रों की मालाओं से आवृत तथा सुवर्णमय दण्ड से सुस्थिर बने हुए उस शोभाशाली कान्तिमान रथ पर शम्बरासुर आरूढ़ हुआ। सोने का विचित्र कवच, धनुष और बाण धारण करके काल से प्रेरित हो युद्ध की इच्छा से वह प्रस्थित हुआ। उसके साथ चार मंत्री थे और वह विशाल सेना से घिरा हुआ था। दुर्धर, केतुमाली, शत्रुहन्ता और प्रमर्दन- इन मन्त्रियों से घिरा हुआ वह युद्ध की इच्छा से रणभूमि की ओर प्रस्थित हुआ। दस हजार हाथी, दो सौ रथ, आठ हजार घोडे़ और दस लाख पैदल, इतने योद्धाओं से घिरे हुए शम्बरासुर ने उस समय युद्ध के लिये प्रस्थान किया। युद्ध के लिये जाते समय उसके सामने बहुत-से उत्पात प्रकट हुए। आकाश में गृध्रों का मण्डल मँडराने लगा। संध्याकाल के समान लाल रंग के बादल गड़गड़ाने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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