हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-21

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पंचसप्तितम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

इन्‍द्र और उपेन्‍द्र का पुनर्युद्ध, उत्‍पातों का प्राकट्य, ब्रह्मा जी की आज्ञा से कश्‍यप और अदिति का बीच में आकर दोनों का युद्ध बंद कराना, फिर सबका स्‍वर्ग में गमन, अदिति की आज्ञा से शची द्वारा उपहार पाकर पारिजात सहित द्वारका गमन, पारिजात से द्वारकावासियों की प्रसन्नता, सत्‍यभामा के पुण्‍यक व्रत में प्रतिग्रह के लिए श्रीकृष्‍ण द्वारा नारद जी का स्‍मरण

वैशम्पायन जी कहते हैं– नरेश्‍वर! तदनन्‍तर महामनस्‍वी श्रीकृष्‍ण बिल्‍वोदकेश्वर देव को नमस्‍कार करके अपने श्रेष्‍ठ रथ पर आरूढ़ हो युद्ध के लिए चले। रथ पर बैठे हुए मधुसूदन ने पुष्‍कर के निकट समस्‍त देवगणों के साथ सत्‍कारपूर्वक खड़े हुए देवराज इन्‍द्र का युद्ध के लिए आह्वान किया। तब साधुओं को समस्‍त मनोवांछित वस्‍तु प्रदान करने वाले देवेन्‍द्र घोड़ों से जुते हुए उत्‍तम रथ पर जयन्‍त सहित आरूढ़ हुए। कुरुनन्‍दन! तत्‍पश्‍चात रथ पर बैठे हुए उन देवताओं का दैववश पारिजात के लिए युद्ध आरम्‍भ हो गया। उस रणभूमि में शत्रुसेना को पीड़ित करने वाले श्रीकृष्‍ण ने अपने सीधे जाने वाले बाण समूहों द्वारा देवराज इन्‍द्र के सैनिकों का संहार आरम्‍भ किया।

प्रभो! वे दोनों वीर शक्तिशाली थे तो भी महेन्‍द्र ने उपेन्‍द्र पर और उपेन्‍द्र विष्‍णु ने देवेश्‍वर इन्‍द्र पर शस्त्रों द्वारा प्रहार नहीं किया। जनेश्‍वर! जनार्दन ने महेन्‍द्र के एक-एक अश्‍व को दिव्‍यास्‍त्रों द्वारा अभिमन्त्रित दस-दस तीखे बाणों से घायल कर दिया। राजेन्‍द्र! अमरश्रेष्‍ठ देवेन्‍द्र ने भी दिव्‍यास्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित भयंकर बाणों से श्रीकृष्‍ण के शैव्‍य आदि चारों घोड़ों को आच्‍छादित कर दिया। श्रीकृष्‍ण ने इन्‍द्र के ऐरावत हाथी पर सहस्‍त्रों बाण बरसाये तथा महातेजस्‍वी बल-विनाशन इन्‍द्र ने श्रीहरि के वाहन गरुड़ पर हजारों बाणों की वर्षा की। शत्रुओं को विदीर्ण करने वाले महात्‍मा नारायण और देवेन्‍द्र उस दिन बड़े-बड़े रथों द्वारा युद्ध कर रहे थे।

भारत! उस समय जल में ठहरी हुई नौका की भाँति सारी पृथ्‍वी कांपने लगी। दिशाओं के प्रदेश सब ओर से दिग्‍दाहजनित आग की लपटों से व्‍याप्‍त दिखायी देते थे। बडे­़-बडे़ पर्वत हिल गये। सैकड़ों वृक्ष गिर गये और धर्मात्‍मा मनुष्‍य भी धराशायी होने लगे। नरेश्‍वर! वहाँ सैकड़ों बार वज्रपात हुआ तथा प्रजानाथ! समस्‍त सरिताएं अपने प्रवाह के प्रतिकूल उलटी दिशा में बहने लगी। चारों ओर आंधी चलने लगी, प्रभाशून्‍य उल्‍काएं गिरने लगीं और प्राणियों के समुदाय रथों की घरघराहट से बारम्‍बार मोहित होने लगे।

जनपदेश्‍वर! पानी में भी आग जलने लगी। आकाश में सब ओर ग्रह दूसरे ग्रहों के साथ युद्ध करने लगे। सैकड़ों तारे टूटकर स्‍वर्ग से पृथ्‍वी पर गिर पड़े। दिग्‍गज और पाताल निवासी नाग अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे। गदहों की भाँति धूसर और अरुणवर्ण वाले बादलों के टुकड़े बड़े जोर­-जोर से गर्जना करते हुए आकाश में छा गये और उल्‍कापात तथा रक्‍त की वर्षा करने लगे। नरेन्‍द्र शिरोमणे! उस समय उन दोनों देववीरों को युद्ध में उपस्थित हुआ देख भूमि, अन्‍तरिक्ष तथा आकाश के प्राणी स्‍वस्‍थ न रह सके। मुनिगण जगत के हित की कामना से मंत्रों का जप करने लगे और महात्‍मा ब्राह्मण भी बड़ी उतावली के साथ उन्‍हीं मन्‍त्रों के जप में संलग्‍न हो गये। तब महातेजस्‍वी ब्रह्मा ने कश्‍यप से कहा- ­’सुव्रत! तुम बहू अदिति के साथ जाओ और दोनों पुत्रों को मना करो। नरश्रेष्ठ! तब ब्रह्मा जी से ‘बहुत अच्‍छा’ कहकर मुनिवर कश्‍यप रथ पर बैठकर गये और दोनों पुत्रों के निकट खडे़ हो गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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