वैशम्पायन उवाच
जरासंधस्तत: प्राप्तो नृप: सर्वमहीक्षिताम्।
नराधिपैर्बलयुतैरनुयातो महाद्युति:।।1।।
व्यायतोदग्रतुरगैर्विस्पष्टार्थसमाहितै:।
रथै: साङ्ग्रामिकैर्युक्तैरसंगगतिभि: क्वचित्।।2।।
हैमकक्षैर्महाघण्टैर्वारणैर्वारिदोपमै:।
महामात्रोत्तमारूढै: कल्पितै रणगर्वितै:।।3।।
स्वारूढै: सादिभिर्युक्तै: प्रेंखमाणै: प्रवल्गितै:।
वाजिभिर्वायुसंकाशै: प्लवद्भिरिव पत्रिभि:।।4।।
खड्गचर्मबलोदग्रै: पत्तिभिर्बलिनां वरै:।
सहस्त्रसंख्यैर्निर्मुक्तैरुत्पतद्भिरिवोरगै:।।5।।