हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-20

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

कंस द्वारा देवकी के नवजात शिशुओं की हत्या, योग माया द्वारा सातवें गर्भ का संकषर्ण, श्रीकृष्ण का प्राकट्य और नन्द भवन में प्रवेश, कंस द्वारा नन्दकन्या को मारने का प्रयत्न और उसका दिव्यरूप में दर्शन देना, कंस द्वारा क्षमा-प्रार्थना और देवकी द्वारा उसे क्षमा-दान

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर पति द्वारा गर्भाधान किये जाने पर देवता के समान तेजस्विनी देवकी ने पहले बताये हुए सात गर्भों को क्रमश: यथोचित रूप से ग्रहण किया। पहले जो छ: गर्भ प्रकट हुए, उन सबको कंस ने पत्थर पर पटककर मार डाला। जब सातवां गर्भ प्राप्त हुआ, तब योगमाया ने उसे रोहिणी के उदर में स्थापित कर दिया। रजस्वला रोहिणी आधी रात के समय अपने भीतर स्थापित हुए उस गर्भ को गिराने की चेष्टा करने लगी; परंतु सहसा निद्रा से अविष्ट होकर वह स्वयं पृथ्वी पर गिर पड़ी। उसने अपने पेट से निकले हुए उस गर्भ को स्वप्न की भाँति देखकर फिर नहीं देखा (क्योंकि योगमाया ने उसे अदृश्य कर दिया था); इससे दो घड़ी तक उसके मन में बड़ी व्यथा हुई। रात्रि के अंधकार में बुद्धिमान वसुदेव की पत्नी रोहिणी चन्द्रमा की प्यारी भार्या रोहिणी के समान दिखायी देती थी। वह उस गर्भ के लिये उद्विग्नि हो रही थी। उस समय निद्रा ने उससे कहा- ‘शुभे! तुम्हारे उदर में स्थापित हुआ जो यह गर्भ है, इसका आकर्षण हुआ है, इस कारण यह पुत्र संकर्षण नाम से प्रसिद्ध होगा। इस प्रकार उस पुत्र को पाकर रोहिणी मन-ही मन प्रसन्न हुई; किंतु लज्जा से उसका मुख कुछ नीचे को झुक गया। फिर तो वह उत्तम प्रभा से युक्त रोहिणी के समान अपने भवन के भीतर चली गयी। उधर देवकी के उस सातवें गर्भ की खोज होने लगी; इतने ही में उसने आठवाँ गर्भ धारण किया, जिसके लिये कंस ने उसके पहले के सात गर्भ मार गिराये थे। कंस के मन्त्री उस आठवें गर्भ की रक्षा में यत्नपूर्वक लग गये।

इधर भगवान विष्णु भी स्वेच्छा से ही उस गर्भ में निवास करने लगे। उसी दिन गोकुल में यशोदा ने भी भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करने वाली तथा उन्हीं के शरीर से प्रकट हुई योगनिद्रा को अपने गर्भ में धारण किया। गर्भ का समय पूर्ण होने से पहले ही आठवें मास में उन दोनों स्त्रियों- देवकी और यशोदा ने प्राय: एक ही साथ प्रसव किया। वृष्णिकुल का भार वहन करने वाले भगवान श्रीकृष्ण जिस रात में प्रकट हुए, उसी रात में यशोदा ने भी एक कन्‍या को जन्म दिया। एक यशोदा नन्द गोप की भार्या थी और दूसरी देवकी वसुदेव की। वे दोनों प्राय: एक ही समय में गर्भवती हुईं। (आठवें मास में) आधी रात के समय सुन्दर अभिजीत मुहूर्त का योग प्राप्त होने पर देवकी ने भगवान विष्णु को पुत्र रूप से जन्म दिया और यशोदा ने उस कन्या को। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म (अवतार) ग्रहण करते समय समुद्रों में ज्वार-सा उठने लगा। पृथ्वी को धारण करने वाले शेष आदि विचलित हो उठे और बुझी हुई अग्नियां अपने-आप प्रज्वलित हो गयी। श्रीकृष्ण‍ के अवतार लेते समय शीतल मन्द सुखदायिनी हवा चलने लगी। उड़ती हुई धूल शान्त हो गयी तथा ग्रह और नक्षत्र अत्यन्त प्रकाशित होने लगे। जब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए, उस समय अभिजीत नामक स्वरूप पापहारी तथा सर्व समर्थ भगवान नारायण ने प्रकट होते ही अपने नेत्रों से सबका मन मोह लिया। स्वर्गलोक में बिना बजाये ही देवताओं की दुन्दुभियां बज उठीं। देवेश्वेर इन्द्र आकाश से फूलों की वर्षा करने लगे। गन्धर्व और अप्सराओं सहित महर्षिगण अपने मंगलमय वचनों द्वारा भगवान मधुसूदन की स्तुति करते हुए उनकी सेवा में उपस्थित हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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