हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 50 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 50 श्लोक 1-5

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जनमेजय उवाच
हत्वाय कंसं महावीर्यं देवैरपि दुरासदम्।
नाभिषिक्ता: स्वेयं राज्ये नोपविष्टो नृपासने।।1।।

कन्यार्थे चागत: कृष्णयस्त‍त्रापि न कृतोतिथि:।
अमानमतुलं प्राप्य क्षान्तैवान् केन हेतुना।।2।।

विनताया: सुतश्चैैव महाबलपराक्रम:।
स चापि क्षमया युक्त: कारणं किमपेक्षित:।
एतदाख्याहि भगवन् परं कौतुहलं हिमे।।3।।

वैशम्पायन उवाच
विदर्भनगरीं प्राप्ते वैनतेय सहाच्युते।
मनसा चिन्तंयामास वासुदेवाय कैशिक:।।4।।

दृष्ट्वाऽऽश्चार्यं हि न: सर्वान् राजन्यान प्रवदाम्यहम्।
वसुदेवसुते दृष्टेश ध्रुवं पापक्षयो भवेत्।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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