हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-14

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण का नारद जी को अमरावती पर आक्रमण करने का निश्चय बताकर इन्द्र के पास संदेश भेजना, इन्द्र और बृहस्पति की बातचीत, बृहस्पति का कश्यप जी को यह समाचार बताना और कश्यप जी का युद्ध की शान्ति के लिये भगवान शंकर की स्तुति करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर रमणीय द्वारकापुरी में जाकर मुनिवर नारद ने शत्रुओं का दमन करने वाले पुरुषप्रवर नारायण (भगवान श्रीकृष्ण) का दर्शन किया। वे अपने भवन में सत्यभामा के साथ सुखपूर्वक बैठे थे और सम्पूर्ण तेजों का अतिक्रमण करने वाले अपने दिव्य-विग्रह से विराजमान हो रहे थे। दृढ़तापूर्वक अपने व्रत का पालन करने वाले महात्मा श्रीकृष्ण उसी (पारिजात) के विषय में सोच रहे थे और भामिनी सत्यभामा को केवल वाणी मात्र से सान्त्वना दे रहे थे।

नारद जी को देखते ही भगवान अधोक्षज उठकर खड़े हो गये तथा उन्होंने शास्त्रोेक्त विधि से उनका पूजन किया। जब वे सुखपूर्वक आसन पर बैठ गये और विश्राम कर चुके, तब मधुसूदन श्रीकृष्ण ने हंसकर उनसे परिजात-वृक्ष के विषय में समाचार पूछा। जनमेजय! तब तपोधन मुनि नारद जी ने सारा समाचार विस्तारपूर्वक बतलाया और इन्द्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण के लिये इन्द्र की कही हुई सारी बातें सुनायीं। वह सब सुनकर श्रीकृष्ण ने नारद जी से कहा- 'धर्मात्माओं में श्रेष्ठ मुनिश्वर! मैं कल अमरावती पुरी की यात्रा करूंगा।' ऐसा कहकर श्रीहरि नारद जी के साथ ही समुद्र-तट पर गये और वहाँ एकान्तर में उन्होंने उन देवर्षि को यह संदेश दिया- ‘तपोधन! आप आज ही इन्द्र भवन में जाकर मेरी ओर से अमर श्रेष्ठ महात्मा इन्द्र को प्रणाम करके उनसे मेरी यह बात बता दीजिये कि इन्द्र! प्रभो! आप युद्ध में मेरे सामने नहीं ठहर सकेंगे। आपको यह ज्ञात हो जाना चाहिये कि मैं पारिजात को वहाँ से ले आने का दृढ़ निश्चय कर चुका हूं’।

श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर नारद जी स्वर्गलोक को चले गये। वहाँ उन्होंने अमित तेजस्वी देवराज इन्द्र को श्रीकृष्ण की कही हुई सारी बात बता दी। कुरुनन्दन! तब बलासुर का विनाश करने वाले इन्द्र ने बृहस्पति से यह सब प्रसंग कह सुनाया। उसे सुनकर बृहस्पति ने देवेन्द्र से कहा- ‘अहो, धिक्कार है! शतक्रतो! मैं वहाँ से ब्रह्मलोक को चला गया था। इसी बीच में तुमने यह दुनीर्ति आरम्भ कर दी; क्योंकि तुम्हारे इस बर्ताव के कारण यहाँ भयंकर भेद (कलह) का अवसर उपस्थित हो गया है। भुवनेश्वर! देव! क्या‍ कारण था कि तुमने मुझसे बताये बिना ही यह दुष्कृत्या आरम्भ कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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