हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-15

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

नागरिकों से भरी रंगशाला में मंचों तथा प्रेक्षागृहों की शोभा, कंस तथा मल्लों का आगमन, श्रीकृष्ण और बलराम का रंगद्वार पर पदार्पण, कुवलयापीड़, महावत तथा हाथी के पादरक्षकों का वध और दोनों बंधुओं का रंगस्थल में प्रवेश

वैशम्‍पायन जी कहते हैं– जनमेजय! वह दिन समाप्‍त होकर जब दूसरा उपस्‍थित हुआ, तब युद्ध देखने ‍की इच्‍छा वाले पुरवासियों से वह महान रंगस्‍थल भर गया। वहाँ जो मंच रखे गये थे, वे चित्रों से सुशोभित तथा आठ कोण वाले पायों से अलंकृत थे। जिन घरों में वे मंच थे, उनके द्वारों पर बेदियाँ बनी थीं और कुण्‍डी के साथ किवाड़ें भी थी। उनमें झरोखों के रुप में अर्धचन्द्राकार छिद्र रखे गये थे। वे मंच और मंचागार उत्‍तमोत्‍तम बिछौनों से विभूषित थे। उन मंचागारों के द्वार पूर्वाभिमुख थे। वे सब-के-सब सुन्दर और खुले हुए थे (अथवा उनमें झीने सूत के मनोहर परदे लगे थे)। फूलों की मालाओं तथा मोती आदि की लड़ियों से उन सबको सजाया गया था। वे शोभा सम्‍पन्न एवं अलंकृत मंचागार शरद्‍-ॠतु के बादलों के समान शोभा पाते थे। उनमें सुन्दर मल्‍ल आदि यथा स्‍थान बैठे थे, जिन्हें युद्ध के लिये भली-भाँति विभूषित किया गया था। उन सबके द्वार वह समाजवाट या रंगस्‍थल मेघों की घटा से युक्‍त महासागर के समान शोभा पा रहा था। वहाँ एक ही शिल्‍प से जीवन-निर्वाह करने वाले श्रेणी नामक कारीगरों तथा एक जाति के समुदायों के लिये पृथक-पृथक मंच थे। उन मंचों पर जो पताकाएँ निरन्तर फहराती रहती थीं, उनमें उन कारीगरों के उपकरण-द्रव्‍य के चिह्न अंकित थे। उन पताकाओं से वे मंच पर्वतों के समान शोभा पाते थे। अन्त:पुर की स्‍त्रियों के लिये अनेक प्रेक्षागार सुशोभित हो रहे थे, जो सुवर्ण से चित्रित तथा रत्नों की प्रभा से व्‍याप्त थे।

रत्‍न राशि से निर्मित उन प्रेक्षागारों के ऊपरी भाग में पताकाएँ फहरा रही थीं और उनके निचले भाग में परदे पड़े हुए थे। इससे वे आकाश में पंखयुक्‍त पर्वत के समान शोभा पाते थे। उन प्रेक्षागारों में चामरों, हारों, झनकारते हुए भूषणों तथा विभिन्न मणियों की चित्र-विचित्र प्रभाएँ सब ओर फैल रही थी। गणिकाओं के लिये पृथक मंच बने थे, जो सुन्दर बिछौनों और वस्‍त्रों से ढँके हुए थे। वे सब-के-सब विमान के समान कान्तिमान दिखायी देते थे और मुख्‍य-मुख्य वरांगनाएं उनकी शोभा बढ़ाती थीं। वहाँ विख्‍यात आसन, सोने के पलंग तथा बिछे हुए विचित्र एवं पुष्‍प गुच्‍छों से युक्‍त कालीन सुशोभित थे। वहाँ विख्‍यात आसन, सोने के पलंग तथा बिछे हुए विचित्र एवं पुष्‍पगुच्‍छों से युक्‍त कालीन सुशोभित थे। वहाँ सोने के घड़ों में पीने के लिये जल रखे गये थे। जलपान के जो स्‍थान थे, उन्हें भी शोभा से सम्‍पन्न किया गया था। वहाँ फल के टुकड़ों से भरी हुई चँगेरियाँ (टोकरियाँ) रखी गयी थीं, जिन्हें जलपान या कलेवे के उपयोग के लिये वहाँ स्‍थापित किया गया था।

और भी बहुत-से मंच थे, जो लकड़ियों के ढेर से आबद्ध थे। उन पर भी अच्‍छे बिछावन डाले गये थे। इस तरह के सैकड़ों-हजारों मंच वहाँ शोभा पा रहे थे। घरों के ऊपर जो घर थे, उनमें स्‍त्रियों के लिये प्रेक्षागृह बने थे। उनके दरवाजों पर महीन जालीदार परदा पड़ा था, जिससे वहाँ बैठे हुए लोग बाहर की सारी वस्‍तुएँ देख सकते थे। वे प्रेक्षाभवन आकाश में राजहंसों के समान सुशोभित हो रहे थे। कंस के लिये जो प्रेक्षागार (दृश्‍य देखने का स्‍थान) बना था, वह अधिक शोभा से प्रकाशित हो रहा था। उसका दरवाजा पूर्व की ओर था। उस पर मनोहर जालीदार पर्दा पड़ा था। वह भवन मेरुपर्वत के शिखर के समान सुनहरी प्रभा से उद्भासित होता था। उसके खम्‍भे स्‍वर्णपत्र से जटित होने के कारण विशेष शोभा से सम्‍पन्न थे तथा वह भवन चारु चित्रों के संनिवेश से सुशोभित था। मालाओं की लड़ियों से भी उसे सजाया गया था। राजा की बैठक या निवास-स्‍थान के लिये जो आवश्‍यक लक्षण होने चाहिये, उन सबसे वह सम्‍पन्न था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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