हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-11

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

दन्तवक्त्र और शाल्व का भाषण सुनकर भीष्मक का श्रीकृष्ण के प्रभाव का वर्णन करते हुए उसे प्रसन्न करने का निश्चय करना

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! महामना सुनीथ के ऐसा कहने पर करूष देश के वीर राजा दन्तवक्त्र ने भाषण देना आरम्भ किया। दन्तवक्त्र बोला- 'राजाओ! यहाँ मगधराज ने और राजा सुनीथ ने जो कुछ कहा है, उसे मैं युक्तिसंगत मानता हूँ; क्योंकि इनका प्रवचन हम लोगों के लिये हितकर है। मैं न तो विद्वेष के कारण, न अहंकारवादी होने के कारण और न अपनी विजय की अभिलाषा रखने के ही कारण आप दोनों के अमृतमय वचनों को सदोष बता रहा हूँ। इस राजसभा में कौन ऐसा पुरुष है जो इस प्रकार समुद्र के समान अत्यन्त अगाध एवं नीतिशास्त्र के अनुकूल सर्वगुण सम्पन्न बात कह सके। परंतु आप लोगों को एक कर्तव्य की याद दिलाने के लिये मैं जो कुछ कहता हूँ, मेरी यह बात सुन लीजिये।

नरेश्वरों! यदि वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण यहाँ पधारे हैं, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है। जैसे हम सब लोग यहाँ आये हैं, उसी तरह श्रीकृष्ण भी चले आये हैं। इसमें क्या दोष है और क्या गुण। हम सब लोगों के आगमन का एक ही उद्देश्य है- राजकन्या की प्राप्ति। हम लोगों ने एक साथ मिलकर आपस में एकता स्थापित करके जो गोमन्त पर्वत पर घेरा डाल रखा था, उस दशा में यदि वहाँ युद्ध हुआ तो उसे आप लोग दोष कैसे बता रहे हैं।

राजन! वीर बलराम और श्रीकृष्ण कंस को मोह में डालने के लिये ही वनवास कर रहे थे। वृन्दावन के किनारे रहते थे; परंतु देवर्षि नारद के कहने से उन दोनों भाई बलराम और श्रीकृष्ण को कंस ने उनका वध करने के लिये बुलवाया और कुवलयापीड़ हाथी के द्वारा आक्रमण कराकर उन दोनों वीरों के क्रोध को उद्दीपित किया। उस दशा में वे दोनों उस हाथी को मारकर समुद्र के समान विशाल रंगशाला में प्रविष्ट हुए; फिर उन्होंने अपने बाहुबल का आश्रय लेकर मुर्दे के समान बैठे हुए मथुरा नरेश को यदि उसके साथियों सहित मार डाला तो इसमें उनके द्वारा क्या दोष बन गया। राजन! इसी तरह कंस का वध करके यदि श्रीकृष्ण और बलराम ने हम वयोवृद्ध नरेशों के साथ विरोध किया और उस दशा में यदि हम सब लोगों ने वहाँ पहुँचकर मथुरापुरी पर घेरा डाल दिया तो उसमें भी क्या दोष था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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