हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 95 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 95 श्लोक 1-5

Prev.png

 

वैशम्पायन उवाच
नभो नभस्येऽथ निरीक्ष्य मासि कामस्तादा तोयदवृन्दकीर्णम्।
प्रभावतीं चारुविशालनेत्रामुवाच पूर्णेन्दुनिकाशवक्त्र:।।1।।

तवानभागो वरगात्रि चन्द्रो न दृश्यते सुन्दरि चारुबिम्ब:।
त्वनत्के शपाशप्रतिमैर्निरुद्धो बलाहकैश्चातरुनिरन्तमरोरु।।2।।

संदृश्योते सुभ्रु तडिद् घनस्था त्वं हेमचार्वाभरणान्वितेव।
मुंचति धाराश्च् घना नदन्त्स्वथाद्धारयष्टे: सदृशा वरांगि।।3।।

घनप्रदेशेषु बलाकपंक्त स्त्व द्दन्ततपंक्तिप्रतिमा विभान्ति।
निमग्नेपद्मानि सरित्सु सुभ्रु न भान्ति तोयानि रयाकुलानि।।4।।

अमी घना वायुवशोपयाता बलाकमालामलचारुदन्ता:।
अन्योनन्यशमभ्यााहनितुं प्रवृत्ता वनेषु नागा इव शुक्ल दन्ता:।।5।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः