हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 39 श्लोक 1-5

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 39 श्लोक 1-5

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वैशम्पायन उवाच
विकद्रोस्तुद वच: श्रुत्वात वसुदेवो महायशा:।
परितुष्टेन मनसा वचनं चेदमब्रवीत्।।1।।

राजा षाङ्गुण्यवक्ता वै राजा मन्त्रार्थतत्त्ववित्।
सतत्त्वं हितं चैव कृष्णोनक्तं किल धीमता ।।2।।

भाषिता राजधर्माश्च सत्यातश्च् जगतो हिता:।
विकद्रुणा यदुश्रेष्ठ‍ यद्धितं तद् विधीयताम्।।३।।

एतच्छ्रुत्वा‍ पितुर्वाक्यं विकद्रोश्च् महात्मन:।
वाक्यरमुत्तवममेकाग्रो बभाषे पुरुषोत्त म: ।।4।।

ब्रुवतां व: श्रुतं वाक्यं हेतुत: क्रमतस्‍तथा ।
न्यावयत: शास्त्रयतश्चैव दैवं चैवानुपश्यताम्।।5।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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