हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुष्पञ्चशत्तम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवादकालयवन का राजाओं का अनुरोध स्वीकार करके श्रीकृष्ण पर विजय पाने के लिये मथुरा को प्रस्थान
कालयवन बोला- बहुत से राजाओं ने मिलकर जो मुझे श्रीकृष्ण की निग्रह के लिये नियुक्त किया है, इससे मैं धन्य हो गया। यह उन सबका मुझ पर महान अनुग्रह है। आज मेरा जीवन सफल हो गया। जो तीनों लोकों में देवताओं और असुरों के लिये दुर्जय है, उन्हीं के निग्रह के लिये मुझे भेजने का निश्चय किया गया और मुझे विजयसूचक आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। हर्ष में भरे हुए उन राजसिंहों ने यदि मेरी विजय का निश्चय किया है तो उनके वचनामृत की वर्षा से मेरी जीत अवश्य होगी। राजेन्द्र! मैं नृपश्रेष्ठ जरासंध के कथनानुसार उन राजाओं के वचन का पालन अवश्य करूंगा। इस युद्ध में यदि मेरी पराजय भी हुई तो वह मेरे लिये विजय के ही समान होगी। राजन! मैं आज की तिथी, नक्षत्र, मुहूर्त और करण को शुभ मानकर श्रीकृष्ण को युद्ध में जीतने के लिये आज ही मथुरा को प्रस्थान करूंगा। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! सौभविमान के अधिपति बलवान राजा शाल्व से ऐसा कहकर कालयवन ने बहुमूल्य मणिमय आभूषणों द्वारा उसका यथोचित सत्कार किया। राजेन्द्र! तत्पश्चात उस राजा ने सिद्धिसूचक आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये ब्राह्मणों को धन दिया और पुरोहित को बहुत-सा धन अर्पित किया। तदनन्तर विधिपूर्वक अग्नि में आहुति करके यात्राकालिक मंगलाचार सम्पन्न करने के पश्चात राजा कालयवन ने जनार्दन श्रीकृष्ण पर भली-भाँति विजय पाने के लिये वहाँ से प्रस्थान किया। भरतश्रेष्ठ! इधर राजा शाल्व भी कृतार्थ एवं प्रसन्नचित्त हो यवनराज को हृदय से लगाकर अपने नगर को चला गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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