हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वयधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
नारद जी कहते हैं- यादवों! भगवान् श्रीकृष्ण ने मुर दैत्य के पाश काट डाले, निसुन्द और नरकासुर को मार डाला था। प्राग्ज्योतिषपुर का मार्ग सब लोगों के लिये क्षेममय- निष्कण्टक बना दिया। शूरनन्दन श्रीकृष्ण ने अपने धनुष की टंकार और पाञ्चजन्य शंख के हुंकार से उन समस्त भूपालों को आतंकित कर दिया, जो युद्ध में उनके साथ स्पर्धा रखते थे। मेघों की घटा के समान छायी हुई दक्षिण देशीय रथ सेनाओं से सुरक्षित तथा महान् बल और पराक्रम से सम्पन्न रुक्मी को युद्ध में पराजित करके इन वृष्णिकुलतिलक केशव ने मेघ के समान गम्भीर घोष करने वाले एवं सूर्यतुल्य तेजस्वी रथ के द्वारा रुक्मिणी को शीघ्र हर लिया। इस प्रकार शंख, चक्र, गदा और खड्ग धारण करने वाले श्रीकृष्ण ने भोजकुलनन्दिनी रुक्मिणी के साथ विवाह किया और उन्हें अपनी पटरानी बनाया। जारूथी नगरी में आह्वृति, क्राथ एवं शिशुपाल को परास्त किया, सेना सहित दन्तवक्त्र और शतधन्वा को भी हरा दिया। इन्होंने इन्द्रद्युम्न, कालयवन और केशेरुमान का भी क्रोधपूर्वक वध किया है तथा हाथ में सुदृढ़ धनुष धारण करके सौभविमान के स्वामी श्रीमान् राजा शाल्व को भी मार डाला है। इन समलनयन पुरुषोत्तम ने चक्र द्वारा सहस्रों पर्वतों को टूक-टूक करके बिखेर दिया और द्युमत्सेन को मार गिराया। जो युद्ध में अग्नि और सूर्य के समान पराक्रमी थे और वरुण देवता के उभय-पार्श्व में विचरण करते थे, जिनमें पलक मारते-मारते एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुँच जाने की शक्ति थी, वे गोपति और तालकेतु नामक महाभोज महेन्द्र पर्वत के शिखर पर पुरुषसिंह श्रीकृष्ण द्वारा पकड़े गये और शांगधन्वा के हाथ से इरावती नदी के तट पर मारे गये। इन्हीं श्रीकृष्ण ने डिम्भ और हंस नामक दोनों दानवों को अक्षप्रपतन नामक स्थान में सेवकों सहित मार गिराया। महात्मा केशव ने वाराणसी नगरी जला दी तथा राष्ट्र के लोगों और सगे-सम्बन्धियों सहित काशिराज को काल के गाल में भेज दिया। इन अद्भुतकर्ता श्रीकृष्ण ने युद्ध में झुकी हुई गांठ वाले बाणों द्वारा यमराज को जीतकर वहाँ से इन्द्रसेन के पुत्र को वापस लौटाया था। इन्हीं श्रीकृष्ण ने समुद्रों में तथा लोहित शिखर पर जाकर समस्त जल जन्तुओं सहित महाबली वरुण को भी जीता था। जो महेन्द्र भवन में उत्पन्न होकर सदा महामनस्वी देवतओं द्वारा सुरक्षित रखा गया था, उस पारिजात नामक वृक्ष को इन श्रीकृष्ण ने देवराज की परवा न करके हर लिया। इन जनार्दन ने एक साथ आये हुए पाण्ड्य, पौण्ड्र, कलिंग, मत्स्य तथा वंगदेश के समस्त राजाओं की युद्ध में मार डाला था। इन वीर श्रीकृष्ण ने रणभूमि में एक सौ महामना नरेशों का वध करके अपनी परम सुन्दरी पटरानी गान्धारी से विवाह किया था। गाण्डीव धनुष लेकर युद्ध की क्रीड़ा करते हुए भरतश्रेष्ठ अर्जुन को इन भगवान् मधुसूदन ने कुन्ती के सामने ही जीत लिया (अथवा सहायता देकर उन्हें विजयी बना दिया)। इन पुरुषोत्तम ने (अर्जुन द्वारा रथ युद्ध में द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कर्ण, भीष्म और दुर्योधन को परास्त कर दिया। बभ्रु का प्रिय चाहते हुए शंख, चक्र, गदा और खड्ग धारण करने वाले भगवान् केशव ने सौवीरराज की पुत्री को बलपूर्वक हर लिया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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