हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 120 श्लोक 1-18

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: विंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

अनिरुद्ध के द्वारा आर्या देवी की स्तुति और देवी का प्रसन्न होकर उन्हें बन्धन के कष्ट से मुक्त करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! जब उषा के साथ वीर अनिरुद्ध बलिकुमार राजा बाणासुर के द्वारा बाणनगर में बंदी बना लिये गये, तब वे अपनी रक्षा के लिये कोटवती देवी की शरण में गये। उस समय अनिरुद्ध ने जिस स्तोत्र का गान किया था, वह इस प्रकार है, सुनो। जो अनन्त, अक्षय, दिव्य, आदिदेव और सनातन हैं, उन सर्वश्रेष्ठ जगदीश्वर नारायण देव को नमस्कार करके विश्ववन्दित वरदायिनी चण्डी कात्यायनी आर्या देवी का मैं श्रीहरि के द्वारा प्रशंसित नामों से कीर्तन करूँगा। ऋषियों और देवताओं ने वाणीरूपी पुष्पों द्वारा जिन मंगलमयी देवी की पूजा की है, जो सबके शरीर में विराजमान हैं तथा सम्पूर्ण देवता जिन्हें नमस्कार करते हैं, उन आर्या देवी का मैं गुणगान करूँगा। अनिरुद्ध ने कहा- जो देवराज इन्द्र और भगवान विष्णु की बहिन हैं, उन देवी को मैं अपने हित के लिये नमस्कार करता हूँ तथा हाथ जोड़कर पवित्र हो भाव शुद्ध हृदय से उनकी स्तुति करना चाहता हूँ।

जो गौतमी (गोदावरी)- स्वरूपा, कंस को भय देने वाली, यशोदा का आनन्द बढ़ाने वाली, पवित्र, गोकुल में आविर्भूत तथा नन्दगोप की नन्दिनी हैं, उन आर्या देवी को मैं नमस्कार करता हूँ। जो प्राज्ञा (बुद्धिमती एवं विदुषी), दक्षा, कल्याणस्वरूपा, सौम्या, दानवर्मिनी, सबके शरीर में विद्यमान तथा सम्पूर्णभूतों द्वारा वन्दित हैं, उन आर्यादेवी को मेरा प्रणाम है। जो दर्शनी (दृष्टि शक्ति), पूरणी (मनोरथों की पूर्ति करने वाली), माया स्वरूपा, अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा के समान कान्ति वाली, शान्तिमयी, ध्रुवा (अविनाशिनी), सबकी जननी, मोहिनी तथा शोषणी हैं, ऋषियों सहित सम्पूर्ण देवता जिनकी सेवा करते हैं, समस्त देवता जिनके चरणों में शीश झुकाते हैं, जो काली, कात्यायनी देवी, भयदायिनी तथा भयनाशिनी हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ। जो कालरात्रि, इच्छानुसार सर्वत्र जा सकने वाली, त्रिनेत्रधारिणी और ब्रह्मचारिणी हैं, जो विद्युत्स्वरूपा, मेघ के समान गर्जन करने वाली, वेताली और विशाल मुख वाली हैं, उन देवी को मैं नमस्‍कार करता हूँ।

जो यूथ की प्रधान अध्यक्षा, महासौभाग्‍यशालिनी, शकुनी, रेवती आदि ग्रहस्वरूपा तथा तिथियों में पंचमी, पष्ठी, पूर्णमासी औार चतुर्दशी स्वरूपा हैं, उन देवी को नमस्कार है। सत्ताईस नक्षत्र, सम्पूर्ण नदियाँ और दसों दिशाएँ- ये जिनके स्वरूप हैं, जो नगरों, उपवनों, उद्यानों और अट्टालिकाओं में उनकी अधिष्ठात्री देवी के रूप में निवास करती हैं, उन आर्यादेवी को मैं नमस्कार करता हूँ। जो ह्री (लज्जा), श्री (लक्ष्मी या सम्पत्ति), गंगा, गन्धर्वा (श्रीराधा), योगिनी तथा सत्पुरुषों को योग प्रदान करने वाली हैं, उन कीर्ति, आशा, दिशा, स्पर्शा एवं सरस्वती नाम वाली देवी को मैं प्रणाम करता हूँ। जो वेदों की माता, भक्तवत्सला सावित्री, तपस्विनी, शान्तिकरी, एकानंशा एवं सनातन- स्वरूपा हैं, उन आर्या देवी को नमस्कार है। जो कुटीरवासिनी, मत्त बना देने वाली, अत्यन्त कोपना, इला, मलयवासिनी, सम्पूर्णभूतों को धारण करने वाली, भयंकरी, कुष्माण्डी और कुसुमप्रिया हैं, उन देवी को मेरा नमस्कार है। जिनका स्वभाव दारुण है, आवास स्थान भी मत्त बना देने वाला है, जो विन्ध्य और कैलास पर्वत पर निवास करती हैं, श्रेष्ठ अंगना हैं, सिंह जिनका रथ या वाहन है, जो बहुत से रूप धारण करने वाली तथा वृषभ चिह्न से चिह्नित ध्वज वाली हैं, उन देवी को नमस्कार है। जो दुर्लभ, दर्जय, दुर्गम, निशुम्भासुर को भय दिखाने वाली, देवप्रिया, सुरस्वरूपा तथा वज्रपाणि इन्द्र की अनुजा हैं, उन कल्‍याणमयी देवी को नमस्कार है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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