हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 104 श्लोक 1-17

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

प्रद्युम्‍न का जन्‍म, शम्‍बारासुर द्वारा प्रद्युम्‍न का सूतिकागृह से अपहरण, प्रद्युम्‍न-मायावती-संवाद और प्रद्युम्‍न का शम्‍बरासुर के सौ पुत्रों के साथ युद्ध

जनमेजय ने पूछा- मुने! आपने पहले जो यह बताया है कि प्रद्युम्‍न ने शम्बरासुर का वध किया था, उसके विषय में मैं यह जानना चाहता हूँ कि प्रद्युम्न ने किस प्रकार शम्बरासुर का वध किया था, यह मुझे बताइये। वैशम्पायन जी ने कहा- राजन! भगवान वासुदेव की लक्ष्मीस्वरूपा रुक्मिणी के गर्भ से उत्तम व्रतधारी कामदेव ही प्रद्युम्न रूप से उत्पन्न हुए, जो कामदेव के समान ही मनोहर दिखायी देते थे। उन्होंने ही शम्बरासुर का विनाश किया था। किन्हीं-किन्हीं के मत में जो पुराण में सनत्कुमार कहे जाते हैं, वे ही प्रद्युम्‍न रूप से प्रकट हुए थे। प्रद्युम्‍न के जन्म के पश्‍चात सात रात पूर्ण हो जाने पर कारूपी शम्बरासुर ने श्रीकृष्ण के उस शिशु पुत्र को आधी रात के समय सूतिका गृह से हर लिया। देवमाया का अनुसरण करने वाले श्रीकृष्ण को भविष्य में होने वाली सारी बातें विदित थीं, इसलिये उन्होंने उस रणदुर्मद दानव को उस समय बंदी नहीं बनाया। मृत्यु ने उसकी आयु पर अधिकार कर लिया था, इसलिये उस महान असुर ने माया से उस बालक को हर लिया और उसे दोनों हाथों से ऊपर उठाये हुए वह अपने नगर में ले गया। उसकी रूप और गुण से युक्त एक भार्या थी, जिसके कोई संतान नहीं थी। उसका नाम था मायावती, जो माया के समान ही सुन्दर दिखायी देती थी। उस कालप्रेरित दानव ने भगवान श्रीकृष्ण के उस पुत्र को अपने पुत्र के समान मानकर अपनी उस मायावती भार्या के हाथ में दे दिया। उस बालक को देखते ही मायावती के शरीर में हर्षजनित रोमान्च हो आया। वह बड़े हर्ष के साथ बारम्बार उसकी ओर देखने लगी।

बालक का निरीक्षण करती हुई मायावती के हृदय में पूर्वकाल की स्मृति जाग उठी। यही तो पूर्वकाल में मेरे प्रियतम पति थे। यह स्मरण करके वह इस प्रकार सोचने लगी। 'ये वे ही मेरे स्वामी एवं भर्ता हैं, जिनके लिये मैं दिन-रात चिन्ता और शोक के समुद्र में डूबी रहकर कभी कहीं भी चैन नहीं पाती हूँ। प्राचीन काल में इनके द्वारा खेद में डाले जाने पर देवाधिदेव त्रिशूलधारी भगवान शंकर ने इन्हें अनंग बना दिया था (इनके शरीर को जलाकर भस्म कर दिया था) आज दूसरे जन्म में इनका मुझे दर्शन हुआ है। जब मैं इस रहस्य को जानती हूँ तब मातृभाव से इनके मुख में अपना स्तन कैसे दूँगी। ये मेरे पति हैं, मैं इनकी पत्नी होकर इन्हें पुत्र कैसे कहूँगी।' मन-ही-मन ऐसा सोचकर मायावती ने बालक प्रद्युम्न को एक धाय के हाथ में सौंप दिया तथा रसायन के प्रयोगों से उन्हें शीघ्र ही बड़ा कर दिया। रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न धाय से मायावती की प्रशंसा सुनकर उसे अनजान में अपनी ही माता मानने लगे। मायावती ने कमलनयन श्रीकृष्ण-कुमार को जब बड़ा कर लिया, तब उनके प्रति कामभाव से मोहित होकर उन्हें समस्त दानवी मायाओं की शिक्षा दे दी। प्रद्युम्‍न जब युवावस्था में स्थित हुए, तब साक्षात कामदेव के समान दिखायी देने लगे। वे स्त्रियों के मनोभावों के ज्ञाता और सम्पूर्ण अस्त्रों के प्रयोग में पारंगत थे। उस समय मायावती ने कामवती नारी की भाँति अपने उस प्रियतम पति की कामना की। वह मुस्‍कराती हुई देखने और अपने हाव-भावों से उन्हें लुभाने लगी। उस मनोहर हास वाली देवी मायावती को अपने प्रति आसक्त होती देख वे इस प्रकार बोले।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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