हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-23

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण द्वारा कालिय नाग का दमन, उसका समुद्र को प्रस्थान तथा गोपों को श्रीकृष्ण की महत्त का अनुभव

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! चंचल श्रीकृष्ण ने नदी के तट पर पहुँचकर दृढ़तापूर्वक अपनी कमर कस ली। फिर प्रसन्नतापूर्वक वे कदम्ब की शाखा पर चढ़ गये। मेघ के समान श्‍याम शरीर वाले कमल नयन श्रीकृष्ण ने कदम्ब की शाखा से लटककर कालियदह के बीच में कूदते समय बड़े जोर का शब्‍द किया। श्रीकृष्ण के वहाँ कूदने से यमुना के उस कुण्ड में हलचल पैदा हो गयी। बड़े वेग से जल उछलकर तट भूमि सहित सिंच उठा। ऐसा जान पड़ा, मानों वहाँ से जल से भरा हुआ मेघ फट पड़ा हो। उस शब्‍द से नागराज का विशाल भवन क्षुब्‍ध हो उठा और वह सर्प जल से ऊपर को उठा। उस समय उसके नेत्र क्रोध से भरे हुए थे। मेघों की घटा के समान काले रंग वाला वह नागराज कालिय जब कुपित होकर उठा, उस समय उसके नेत्र प्रान्त रक्‍तवर्ण के दिखायी दे रहे थे। उसके पांच मुख थे और उनके उच्‍छ्वास के साथ आग की लपट उठती थी। उसकी जीभ चंचल गति से लपलपा रही थी और मुख में आग भरी थी। वह पांच भयंकर एवं स्थूल सिर से घिरा रहता था। अपने अग्नि के समान तेजस्वी विशाल शरीर के द्वारा सारे ह्नद को पूर्ण करके वह क्रोध से कांपता तथा तेज से जलता हुआ-सा प्रतीत होता था। क्रोध से जलते हुए उस सर्प की विषाग्नि से कालियकुण्ड का जल खौलने-सा लगा तथा यमुना का प्रवाह पीछे की ओर लौट पड़ा। मानों वह नदी भयभीत-सी होकर पीछे भाग रही हो।

श्रीकृष्ण को अपने ह्नद में आकर बालकों के समान खेलते देख कालिय नाग के क्रोधाग्नि पूर्ण मुखों से उच्छ्वास वायु प्रकट हुई। उस नागराज के मुख से धूमसहित आग की लपटें निकलने लगीं। अपनी क्रोधाग्नि प्रकट करते हुए उस प्रलयंकर- जैसे सर्प ने उस कुण्ड के आस-पास उगे हुए तीरवर्ती वृक्षों को क्षणभर में जलाकर भस्म कर दिया। उसके स्त्री, पुत्र, सेवक तथा अन्य बड़े-बड़े नाग एवं नागराज, जो अनन्त बलशाली थे, अपने मुखों से विषजनित, धूममिश्रित भयंकर आग उगलते हुए उन पर टूट पड़े। उन सभी सर्पों ने श्रीकृष्ण को अपने शरीरों के बन्धन में बांध लिया। उनके हाथ-पैर एवं सारे अंग निश्चेष्ट हो गये। वे पर्वत की भाँति अविचल भाव से खड़े रह गये। उन समस्त नागराजों ने विष के प्रवाह से मिश्रित जल के द्वारा मलिन हुए अपने तीखे दांतों से श्रीकृष्ण को डँसना आरम्भ किया; परंतु शक्तिशाली श्रीकृष्ण मर न सके। इसी बीच में समस्त ग्‍वाल बाल भयभीत हो रोते हुए व्रज में गये और अश्रु गद्गद वाणी में इस प्रकार बोले। गोपों ने कहा- ये श्रीकृष्ण कालियदह में डूबकर मूर्च्छित हो गये हैं और नागराज इन्हें खाये जाता है; अत: जल्‍दी जाओ देर न करो।

दल-बल सहित नन्दगोप से कोई शीघ्र जाकर कह दो कि ‘तुम्हारे कृष्ण को सर्प महान कुण्ड में खींचे लिये जाता है। वह वज्रपात के समान दारुण वचन सुनकर नन्दगोप शोक से व्याकुल हो लड़खडाते हुए उस विशाल ह्नद के पास जा पहुँचे। उनके साथ व्रज के बहुत-से बालक, वृद्ध और युवतियां भी थी। रोहिणी के युवक पुत्र संकर्षण भी आ पहुँचे थे। ये सब-के-सब नागराज की जलस्थ क्रीड़ा भूमि के पास आये। नन्द आदि वे सभी गोप नेत्रों से आंसू बहाते और हाहाकार करते हुए कालिय दह के तट पर खड़े हो गये। वे अपनी विवशता पर लज्जित थे। कोई ‘हाय बेटा! हाय!’ कहकर रो देते और दूसरे ‘हाय! धिक्‍कार है हम सबके जीवन को’ ऐसा कहते हुए चिन्तामग्न हो जाते थे। दूसरे लोग अत्यन्त दु:खी हो ‘हाय! हम मारे गये।’ ऐसा कहते हुए जोर-जोर से रोते थे। व्रज की स्त्रियां यशोदा की ओर देख चिल्‍ला-चिल्‍लाकर कहती थीं- ‘हाय यशोदे! तू बेमौत मारी गयी, क्‍योंकि अपने प्‍यारे लाल को आज इस नागराज के वश में पड़ा हुआ देख रही हो। हाय! वह सर्प के शरीर से आबद्ध हो मृतक की भाँति घसीटा जा रहा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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