हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्र्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-31 का हिन्दी अनुवादये तथा इसी तरह और भी सहस्रों पुत्र श्रीकृष्ण से उत्पन्न हुए थे। इस बात को तुम मेरे द्वारा जान लो। भगवान वासुदेव के वे पुत्र एक लाख अस्सी हजार बताये गये हैं। वे सब-के-सब रण-कर्म-विशारद तथा शूरवीर थे। इस प्रकार मैंने तुमसे भगवान जनार्दन की संतति का वर्णन किया है। नृपश्रेष्ठ! प्रद्युम्न के विदर्भ राजकुमारी रुक्मवती के गर्भ से अनिरुद्ध नामक पुत्र का जन्म हुआ, जिसकी गति को युद्ध में कोई रोक नहीं सकता था। अनिरुद्ध की ध्वजा पर मृग का चिह्न था। बलदेव जी के रेवती के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनके नाम थे निशठ और उल्मुक। ये दोनों भाई देवताओं के समान तेजस्वी तथा पुरुषों में श्रेष्ठ थे। वसुदेव के दो पत्नियां और थीं- सुतनु तथा सुतारा। इन दोनों के गर्भ से वसुदेव के दो पुत्र हुए- पौण्ड्रक तथा कपिल। इनमें से कपिल तो सुतारा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था और पौण्ड्रक सुतनु का पुत्र था। उन दोनों भाइयों में से पौण्ड्रक तो राजा हुआ और कपिल वन को चला गया। वसुदेव के उनकी चतुर्थ वर्ण वाली भार्या से एक महाबली वीर का जन्म हुआ था, जिसका नाम था जरा। वह समस्त धनुर्धर निषादों का स्वामी था। काश्यया ने साम्ब से सुपार्श्व नामक पुत्र प्राप्त किया, जो महान् वेगशाली था। अनिरुद्ध के सानु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। सानु से वज्र का जन्म हुआ। वज्र से प्रतिरथ उत्पन्न हुआ। प्रतिरथ के पुत्र का नाम सुचारु था। वृष्णि के छोटे पुत्र अनमित्र से शिनि का जन्म हुआ। शिनि ने महारथी सत्यवादी सत्यक (सात्यकि) का जन्म हुआ। युयुधान का पुत्र असंग और असंग का पुत्र मणि हुआ। मणि के पुत्र का नाम युगन्धर था। इस प्रकार यहाँ वंश का वर्णन समाप्त किया जाता है। इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में वृष्णिवंश का वर्णन विषयक एक सौ तीनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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