हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 56 श्लोक 1-13

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षट्पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण की आज्ञा से यादवों का द्वारकापुरी को प्रस्थान

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर किसी समय कमलनयन भगवान श्रीकृष्ण ने यादवों की सभा में बैठे हुए समस्त सभासदों से यह हेतु युक्त उत्तम वचन कहा- 'यह राष्ट्र की माला से अलंकृत (समूचे राष्ट्र को माला की भाँति धारण करने वाली राजधानी) मथुरापुरी यादवों की भूमि है। हम भी यहीं पैदा हुए हैं और इसी के व्रज में बड़े हुए हैं।

इस समय हमारा सारा दुःख दूर हो गया है। हमारे शत्रु भी हमसे हार मान चुके हैं। हमने राजाओं से वैर मोल ले लिया है और जरासंध से लड़ाई छेड़ दी है। हमारे पास पर्याप्त वाहन हैं। पैदलों की संख्या भी अनन्त है। हमारे खजाने में विचित्र रत्न हैं तथा हमारे मित्रों की संख्या भी बहुत है। परंतु यह मथुरा की भूमि बहुत छोटी है और शत्रु का सुगमतापूर्वक इसमें प्रवेश हो जाता है। इधर हमारे सैनिकों और मित्रों की बहुत वृद्धि हुई है। हमारे पास जो ये एक करोड़ कुमार (अविवाहित) सैनिक हैं तथा ये जो पैदलों के बहुत-से दल हैं, इनके भी यहीं रहने से यहाँ बड़ी भीड़-भाड़ दिखायी देती है। अतः यदुपुंगवो! अब यहाँ निवास करना मुझे अच्छा नहीं लगता है; इसलिये मैं दूसरी पुरी बसाऊँगा। मेरी इस धृष्टता को आप लोग क्षमा करेंगे। इस यादव सभा में मेरे हार्दिक अभिप्राय के अनुसार जो बात कही गयी है, वह समयानुसार आप लोगों के उद्भव के लिये ही है। यदि आप लोगों को अनुकूल जँचती हो तो कहिये।'

तब समस्त यादव प्रसन्न मन से बोल उठे- ‘प्रभो! इस यादव-समाज के उद्भव के लिये आपको जो अभीष्ट हो, वह कार्य कीजिये। तब समस्त वृष्णिवंशी मिलकर उत्तम मन्त्रणा करने लगे- ‘यह जरासंध (या कालयवन) हम लोगों के लिये अवध्य कर दिया गया है। हमारे उस शत्रु का सैनिक बल बहुत बड़ा है। हमारे पक्ष के नरेशों ने शत्रु की उस सेना का बड़ा भारी विनाश किया है तो भी उसके पास अभी बहुत-सी सेनाएं हैं, जिन्हें हम लोग सौ वर्षों में भी नहीं मार सकते। अत: हमारा विचार उनसे हट जाने के लिये हो गया है।' इसी बीच में कालयवन सहित राजा जरासंध फिर वैसी ही सेना साथ लेकर मथुरा पर चढ़ आया। उस समय मथुरा के सैनिकों के लिये जरासंध की सेना को ही रोकना अत्यन्त कठिन कार्य था। फिर जब, यादवों ने कालयवन का भी आगमन सुना, तब तो उन्होंने मथुरा से हट जाना ही अपने लिये श्रेयस्कर समझा।

Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः