हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टाविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-41 का हिन्दी अनुवाद
ये ही आदित्य, वसु, रुद्र, अश्विनकुमार, मरुद्गण, आकाश, भूमि, दिशा, जल और तेज हैं। ये ही धाता, विधाता और नित्य संहर्ता हैं। सत्य, धर्म, तपस्या तथा पितामह ब्रह्मा भी ये ही हैं। ये नागों में अनन्त और रुद्रों में शंकर माने गये हैं। यह समस्त चराचर जगत इन नारायण देव से ही प्रकट हुआ है। इन जनार्दन से ही सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति होती है। भारत! देवेश्वर श्रीकृष्ण में ही सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। तुम उन्हें नमस्कार करो। ये सनातन पुरुष श्रीकृष्ण ही सदा सम्पूर्ण देवताओं के लिये पूजनीय हैं। इस प्रकार मैंने तुमसे बाणासुर के श्रीकृष्ण और केशव के महात्म्य का वर्णन किया। तुम इसके श्रवण मात्र से अनुपम वंश प्रतिष्ठा प्राप्त करोगे। जो लोग बाणासुर के इस परम उत्तम युद्ध प्रसंग और केशव महात्म्य को अपने मन में धारण करेंगे, उनके पास अधर्म का प्रवेश नहीं होगा। तात जनमेजय! इस यज्ञ की समाप्ति पर तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने भगवान विष्णु की सम्पूर्ण लीला का वर्णन किया है। नरेश्वर! जो इस सम्पूर्ण आश्चर्यमय पर्व को धारण करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक में जाता है। जो प्रतिदिन सबेरे उठकर एकाग्रचित्त हो इसका कीर्तन करता है, उसके लिये इहलोक और परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। इस प्रसंग का अपने अधिकार के अनुसार पाठ या श्रवण करने से ब्राह्मण सम्पूर्ण वेदों का ज्ञाता होता है, क्षत्रिय को युद्ध में विजय प्राप्त होती है, वैश्य धन से सम्पन्न होता है और शूद्र अपनी सम्पूर्ण कामनाऐं प्राप्त कर लेता है। उसे किसी भी अशुभ या अमंगल का प्राप्ति नहीं होती तथा वह दीर्घायु होता है। विप्रवरों! इस प्रकार परीक्षत के पुत्र राजा जनमेजय ने स्थिर चित्त होकर वैशम्पायन के द्वारा कहे गये हरिवंश का श्रवण किया। शौनक! इस प्रकार मैंने संक्षेप और विस्तार के साथ सभी वंशों का वर्णन किया है, अब तुम और क्या सुनना चाहते हो? इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में उपाहरण के प्रसंग की समाप्तिविषयक एक सौ अट्टाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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