हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 128 श्लोक 21-41

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टाविंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-41 का हिन्दी अनुवाद


वैशम्पायन जी कहते हैं- कुरुकुल धुरन्‍धर जनमेजय! भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध में जिस प्रकार बाणासुर को जीता और जीवित छोड़ दिया, यह सब प्रसंग मैंने तुमसे कह सुनाया। तदनन्‍तर यादवों से घिरे हुए भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में सुखपूर्वक रहने लगे। वे परमानन्‍द से सम्पन्न होकर समस्‍त भूमण्‍डल का अनुशासन करते थे। पृथ्‍वीनाथ! इस प्रकार ये भगवान विष्‍णु पृथ्‍वी पर अवतीर्ण होकर यदुकुल शिरो‍मणि वासुदेव के नाम से विख्‍यात हुए। इन्‍हीं सब कारणों से श्रीमान भगवान विष्‍णु वृष्णिवंश के अन्‍तर्गत वसुदेवकुल देवकी देवी के गर्भ से प्रकट हुए। जिसके विषय में तुमने मुझसे प्रश्‍न किया था। जनमेजय! नारद जी के प्रश्‍न का उत्तर मिल जाने से जब वह प्रश्‍न निवृत्त हो गया, उस समय मैंने उसके विषय में संक्षेप से जो कुछ कहा था, वे सारी बातें तुम पहले विस्‍तारपूर्वक सुन चुके हो। भगवान विष्‍णु के मथुरा में होने वाले अवतार के विषय में तुम्हें महान संदेह था, उसके समाधान के लिये मैंने वासुदेव के स्‍वरूप का एवं वासुदेव ही सबकी परमगति (आश्रय) हैं, इस सिद्धान्‍त का भली-भाँति प्रतिपादन कर दिया। श्रीकृष्ण के सिवा दूसरी कोई आश्चर्य की वस्‍तु नहीं है। श्रीकृष्ण ही आश्चर्य के अधिष्ठान या समुद्र हैं। समस्‍त आश्चर्यमय वस्‍तुओं में ऐसा कोई आश्चर्य नहीं है, जो भगवान विष्‍णु के अंश से शून्‍य हो। ये श्रीकृष्ण धन हैं, ये ही धन्‍यों को धन्‍य बनाने वाले और धन्‍य भावन हैं, देवताओं तथा दैत्‍यों में इन भगवान अच्‍युत से बढ़कर धन्‍य दूसरा कोई नहीं है।

ये ही आदित्‍य, वसु, रुद्र, अश्विनकुमार, मरुद्गण, आकाश, भूमि, दिशा, जल और तेज हैं। ये ही धाता, विधाता और नित्‍य संहर्ता हैं। सत्‍य, धर्म, तपस्‍या तथा पितामह ब्रह्मा भी ये ही हैं। ये नागों में अनन्‍त और रुद्रों में शंकर माने गये हैं। यह समस्‍त चराचर जगत इन नारायण देव से ही प्रकट हुआ है। इन जनार्दन से ही सम्पूर्ण जगत की उत्‍पत्ति होती है। भारत! देवेश्वर श्रीकृष्ण में ही सम्पूर्ण जगत विद्यमान है। तुम उन्‍हें नमस्‍कार करो। ये सनातन पुरुष श्रीकृष्ण ही सदा सम्पूर्ण देवताओं के लिये पूजनीय हैं। इस प्रकार मैंने तुमसे बाणासुर के श्रीकृष्ण और केशव के महात्‍म्य का वर्णन किया। तुम इसके श्रवण मात्र से अनुपम वंश प्रतिष्ठा प्राप्त करोगे। जो लोग बाणासुर के इस परम उत्तम युद्ध प्रसंग और केशव महात्‍म्य को अपने मन में धारण करेंगे, उनके पास अधर्म का प्रवेश नहीं होगा। तात जनमेजय! इस यज्ञ की समाप्ति पर तुम्हारे प्रश्‍न के अनुसार मैंने भगवान विष्‍णु की सम्पूर्ण लीला का वर्णन किया है।

नरेश्वर! जो इस सम्पूर्ण आश्चर्यमय पर्व को धारण करता है, वह समस्‍त पापों से मुक्त होकर भगवान विष्‍णु के लोक में जाता है। जो प्रतिदिन सबेरे उठकर एकाग्रचित्त हो इसका कीर्तन करता है, उसके लिये इहलोक और परलोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है। इस प्रसंग का अपने अधिकार के अनुसार पाठ या श्रवण करने से ब्राह्मण सम्पूर्ण वेदों का ज्ञाता होता है, क्षत्रिय को युद्ध में विजय प्राप्त होती है, वैश्‍य धन से सम्पन्न होता है और शूद्र अपनी सम्पूर्ण कामनाऐं प्राप्त कर लेता है। उसे किसी भी अशुभ या अमंगल का प्राप्ति नहीं होती तथा वह दीर्घायु होता है। विप्रवरों! इस प्रकार परीक्षत के पुत्र राजा जनमेजय ने स्थिर चित्त होकर वैशम्पायन के द्वारा कहे गये हरिवंश का श्रवण किया। शौनक! इस प्रकार मैंने संक्षेप और विस्‍तार के साथ सभी वंशों का वर्णन किया है, अब तुम और क्‍या सुनना चाहते हो?

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में उपाहरण के प्रसंग की समाप्तिविषयक एक सौ अट्टाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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